Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 15 Rajprashniya Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana

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Page 277
________________ आगम (१३) प्रत सूत्रांक [६७-७४] दीप अनुक्रम [६७-७४] [भाग-१५] “राजप्रश्नीय” – उपांग सूत्र - २ ( मूलं + वृत्ति:) मूलं [६७-७४] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र - [१३] उपांगसूत्र- [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्तिः श्रीराजमश्री मलयगिरीया वृत्तिः ।। १३४ ।।। पुण मे कारण णो उवागच्छति, एवं खलु भंते! अहं अन्नया कयाई बाहिरियाए उवाणसालार अपेगगणणायक दंडणायगई सरतलवर मावियको टुंबियइन्भसेसेणावइ सत्यवाहमंतिमहामंतिगणगदोवारियअमचचेडपी ढमद्दन गरनिगमद्यसंधिवालेहिं सद्धिं संपरिबुडे विहरामि । तए णं गुत्तिया सखं सलोहं सगेवेचं अवउण (वाउड) बंधणबडं चोरं उर्णेति तए णं अहं तं पु. रिसं जीवंतं चैव अडकुंभीर पक्खिवावेमि अउमएणं पिहाणएणं पिहावेमि अएण य तउएण य आयावेमियाह पुरिसेहि रक्खावेमि, तर अहं अण्ण्या कयाई जेणामेव सा अडकुंभी तेनामेव वागच्छामि उवागच्छिता तं अडकुंभीं उग्गलच्छावेमि उग्गलच्छा वित्तातं पुरिसं सयमेव पासामि जो चेवणं ती अकुंभीए केइ छिदेह या विवरेह वा अंतरेइ वा राई वा जओ णं से जोवे अंतोहितो याज भंते तीसे अडकुंभीए होजा केइ छिड्डे वा जावराई या जओ णं से जीवे अंतोहितो पहिया णिग्गए. तो णं अहं सहेज्जा परिएला रोएका जहा अनो जीवो अन्नं सरीरं नो तं जीवो तं सरीरं, जम्हाणं भंते!तीसे अडकुंभीए णत्थि केइ छिड्डे वा जाव निग्गर, तम्हा सुपतिट्टिया मे पन्ना जहा संजीवो तं सरीरं नो अन्नो जीवो अन्नं सरीर । तए णं केसी कुमारसमणे परसिं रायं एवं बयासी-पएमी ! से जहा नामए कूडागारसाला सिया दुहओलिता गुत्ता गुत्तदुवारा शिवाय - गंभीरा, अहणं केइ पुरिसे भेरिं च दंडं च गहाय कूडागारसालाए अंती २ अणुष्पविसह २ ता केसिकुमार श्रमणं सार्धं प्रदेशी राजस्य धर्म-चर्चा For Pale Only ~277~ 40*40-495% 4948-4944249 40 अच्छिद्रेजी वगतेः शंका तदुत्तरं च सू० ६७ ।।। १३४ ।। jonary or

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