Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 15 Rajprashniya Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
View full book text
________________
आगम
(१३)
[भाग-१५] “राजप्रश्नीय” – उपांग सूत्र-२ (मूलं+वृत्तिः )
----------- मूलं [६२-६४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१३] उपांगसूत्र- [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
[६२-६४]
दीप अनुक्रम [६२-६४]
सारहीत रह गाई जोयणाई उम्भामेइ, तए णं से पएसी राया उण्हेण यतहाए य रहवाएणं परिकिलंते समाणे चित्तं सारहि एवं वयासी-चित्ता ! परिकिलंते मे सरीरे परावत्तेहि रहे, तए णं से चित्ते सारही रहे परावते, जेणेव मियवणे उजाले तेणेव उवागछह, पएसिं राय एवं वयासी-एस णं सामी! मियवणे उजाणे एत्य णं आसाणं समं किलाम सम्म पवीणेमो, तए णं से पएसी राया चित्तं सारहिं एवं वदासी-एवं होउ चित्ता,तए ण से चित्ते सारही जेणेव मियवणे उजाणे जेणेव केसिस्स कुमारसमणस्स अदरसामंते तेणेव उवागच्छद २तुरए णिगिण्हेइ २रहं ठवेइ २त्ता रहाओ पञ्चोकहइ २त्ता तुरए मोएतिरत्ता पएसि राय एवं वयासी-एहण सामी! आसाणं संमं किलाम पवीणे,मो, तए णं से पएसी राया रहाओ पञ्चोकहइ, चित्तेण सारहिणा सद्धि आसाणं समं किलाम सम्म पवीणेमाणे पासइ जत्थ केसीकुमारसमणे महइमहालियाए महापरिसाए मझगये महया २ सद्देणं धम्ममाइक्खमाणं, पासइत्ता इमेयासवे अज्झथिए जाव समुप्पजित्था-जड्डा खलु भो जई पज्जुवासंति मुंडा खलु भो मुंडं पज्जुवासंति म्दा खलु भो मृद पाजुवासंति अपंडिया खल्लु भो! अपंडियं पज्जवासंति निविण्णाणा खल भो। निविगाणं पज्जुवासंति, से केस णं एस पुरिसे जड़े मुद्दे मूढे अपंडिए निविणाणे सिरीए हिरीए उवगए उत्तप्पसरीरे, एस णं पुरिसे किमाहारमाहारेइ ? कि परिणामेइ ? किं खाइ किं पिया कि
केसिकुमार श्रमणं साधं प्रदेशी राज्ञस्य धर्म-चर्चा
~266~

Page Navigation
1 ... 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314