Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 15 Rajprashniya Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana

View full book text
Previous | Next

Page 268
________________ आगम (१३) [भाग-१५] “राजप्रश्नीय” – उपांग सूत्र-२ (मूलं+वृत्ति:) ------------- मूलं [६२-६४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१३] उपांगसूत्र- [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [६२-६४] दीप अनुक्रम [६२-६४] हंता ! अस्थि ॥ (सू०६३)।तए णं से पएसी राया केसि कुमारसमणं एवं वदासी-से केणहेणं भंते ! तुजसं नाणे वा दसणे वा जेणं तुझे मम एयारूवं अज्झत्थियं जाव संकप्प समुप्पणं जाणह पासह, तर णं से केसीकुमारसमणे पएसि रायं एवं वयासी-एवं खलु पएसी अम्हं समणाणं निग्गंधाणं पंचविहे नाणे पणात्ते, तंजहा-आभिणियोहियणाणे मुयनाणे ओहिणाणे मणपजवणाणे केवलणाणे, से किं तं आभिणिचोहियनाणे?, आभिणियोहियनाणे चढविहे पणत्ते, संजहा-उग्गही ईहा अवाए धारणा । से किं तं उग्गहे!, उम्गहे दुविहे पपणते. जहा नंदीए जाव से तं धारणा, से तं आभिणियोहियणाणे । से किं तं सुयनाणे १, सुयनाणे दुबिहे पणत्ते, तंजहा-अंगपविढेच अंगयाहिरंच, सर्व भाणिय जाव दिद्विवाओ। ओहिणाणं भवपाइयं खओवसमियं जहा गंदीए । मणपज्जवनागे दुविहे पण्णते, तंजहा-उज्जुमई प विउलमई य, तहेव केवलनाणं सर्व भाणिया, तत्थ णं जे से आभिणियोहियना से णं ममं अस्थि, तत्थ णं जे से सुयणाणे सेऽविय मर्म अस्थि, तत्थ णं जे से ओहिणाणे सेवि य मर्म अत्थि, तत्थ णं जे से मणपज्जवनाणे सेऽविय मर्म अत्थि, तस्थ पंजे से केवलनाणे से णं मम नत्थि, से णं अरिहंताण भगवंताणं, इएणं पएसी अहं तव चउविहेणं छउमत्थेणं णाणं इमेपारूवं अज्झस्थिय जाव समुप्पण्णं जाणामि पासामि ।। (सू०६४)॥ For P OW केसिकमार श्रमणं सार्धं प्रदेशी राज्ञस्य धर्म-चर्चा ~268~

Loading...

Page Navigation
1 ... 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314