Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 15 Rajprashniya Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana

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Page 242
________________ आगम (१३) प्रत सूत्रांक [५२] दीप अनुक्रम [५२] [भाग-१५] “राजप्रश्नीय” – उपांग सूत्र - २ ( मूलं + वृत्ति:) मूलं [ ५२] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र - [१३] उपांगसूत्र- [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्तिः 9049004004002 4500 409) *०*#4 खाणि य रायकिञ्चाणि य रायनीतीओ य रायववहारा य ताई जियसत्तुणा सि सयमेव पच्खमाणे विहराहित्तिक विसज्जिए । तए णं से चित्ते सारही परसिणा रण्णा एवं बुत्ते समाणे हट्ट जाव पडिसुणेत्ता तं महत्थं जाव पाहुडे गेण्हर, एसिस्स रणो जाव पडिणिक्खम २ ता सेयवियं नगरिं मज्झमज्झेणं जेगेव सए गिहे तेणेव उवागच्छति उवागच्छिता तं महत्थं जाव पाहुडे ठवेइ, कोटुंबियपुरिसे स दावे २ता एवं बयासी खिप्पामेव भो ! देवाणुप्पिया ! सच्छन्तं जाब चाउरघंटं आसरहं जुत्तामेव उagवेह जाव पचष्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तहेब पडिणित्ता खिप्पामेव सच्छत्तं जावजुद चाउरटं आसरहं जुत्तामेव उववेन्ति, तमाणत्तियं पचप्पिणंति, तर णं से चित्ते सारही कोडुंबियपुरिसाण अंतिए एयमट्ठे जाव हियए पहाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छिते सन्नद्धवम्मियकवए उप्पो लिपसरासणपट्टिए पिणिडगेविज्जे बद्धआविद्धविमलवरचिंध गहिया उपहरणे तं महत्थं जाय पाहुडं गेण्हइ २ जेणेव चाउघंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ २ चाउरघं आसरहं दुरूहेति, बहुहिं पुरिसेहि सन्नद्ध जाव गहियाउहपहरणेहिं सद्धिं संपरिबुडे सकोरिंटमल्लदामेण छते घरेजमाणेण२ महया भडचडगररहपहकरविंदपरिक्खिते साओ गिहाओ णिछ सेयवियं नगरि मज्झमशेणं णिग्गच्छ २ ता मुहेहिं वासेहि पायरासेहिं नाइविकिट्ठेहिं For Pernal Paise Only ~ 242~ Maryo

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