Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 12 Gyatadharmkatha Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
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आगम (०६)
[भाग-१२] “ज्ञाताधर्मकथा" - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:)
श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१६], ----------------- मूलं [११४-११५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[०६] अंगसूत्र-[०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
ज्ञाताधर्म- सामण्णपरियागं पाउणति अद्धमासियाए संलेहणाए तस्स ठाणस्स अणालोइयअपडिता कालमासे
R१६ अपरकथाङ्गम्.18 कालं किच्चा ईसाणे कप्पे अण्णयरंसि विमाणसि देवगणियत्ताए उबवण्णा, तत्धेगतियाणं देवीणं नव
कङ्काज्ञापलिओचमाई ठिती पण्णत्ता, तस्थ णं सूमालियाए देवीए नव पलिओवमाई ठिती पन्नत्ता (सूत्रं ११५) ता. सुकु॥२०६॥
'ललिय'त्ति क्रीडाप्रधाना 'गोहि'त्ति जनसमुदायविशेषः 'नरवइदिन्नपयाति नृपानुज्ञातकामचारा 'अम्मापिइनिय- मालिकागनिप्पिवास'त्ति मात्रादिनिरपेक्षा 'वेसविहारकयनिकेय'ति वेश्याविहारेषु-वेश्यामन्दिरेषु कृतो निकेतो-निवासो यया सानिदानं तथा, 'नाणाविहअविणयप्पहाणा' कण्ठ्यं 'पुष्फपूरयं रएइ'चि पुष्पशेखरं करोति, 'पाए रएई' पादावलक्तादिना सू.११४ रजयति, पाठान्तरे 'रावेइति घृतजलाभ्यामार्द्रयति, 'सरीरबाउसिय'ति बकुशः-शनलचरित्रः स च शरीरत उपकरण- ईशाने उतश्वेत्युक्तं शरीरवकुशा-तद्विभूषानुवर्तिनीति, 'ठाणं ति कायोत्सर्गस्थानं निपदनस्थानं वा 'शय्यां' वग्वर्त्तनं 'नषेधिकीपपातः । खाध्यायभूमि चेतयति-करोति, 'आलोएहि जावे त्यत्र यावत्करणात् 'निन्दाहि गरिहाहि पडिकमाहि विउहाहि विसोहेहि सू. ११५ अकरणयाए अन्भुट्टेहि अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवजाहि'त्ति दृश्यमिति, तत्रालोचनं--गुरोनिवेदनं निन्दनपश्चात्तापो गर्हणं-गुरुसमक्षं निन्दनमेव प्रतिक्रमणं-मिथ्यादुष्कृतदानलक्षणं अकृत्याविवर्त्तनं वा वित्रोटनं-अनुबन्ध-15 च्छेदनं विशोधन-प्रतानां पुनर्नवीकरणं शेष कण्ठ्यमिति, 'पडिएकति पृथक्, 'अणोह हियति अविद्यमानोऽपघट्टको-IS२०६॥ यदृच्छया प्रवर्त्तमानायाः हस्तग्राहादिना निवत्तको यस्याः सा तथा, तथा नास्ति निवारको-मैवं कार्षीरित्येवं निषेधको यस्याः सा तथा।
एकटकलsedecease
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