Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 12 Gyatadharmkatha Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana

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Page 497
________________ आगम (०६) [भाग-१२] “ज्ञाताधर्मकथा" - श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१९], ----------------- मूलं [१४१-१४७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[०६] अंगसूत्र-[०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: 58sersesents मणुपणंसि असणपाणखाइमसाइमंसि मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोषवणे णो संचाएइ पोंडरीपं आपुच्छिता बहिया अन्भुजएणं जणवयविहारं विहरित्तए, तत्थेव ओसपणे जाए, तते णं से पोंडरीए इमीसे कहाए लद्धडे समाणे पहाए अंतेउरपरियालसंपरिबुडे जेणेव कंडरीए अणगारे तेणेव उचा०२कंडरियं तिक्खत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ २ बंदति णमंसति २ एवं व०-धन्नेसि णं तुम देवा ! कयत्थे कयपुन्ने कयलक्खणे सुलद्धे णं देवा। तब माणुस्सए जम्मजीवियफले जे गं तुमं रजं च जाच अंतरं च छडइत्ता विगोवइत्ता जाव पचतिए, अहं णं अहणणे अकयपुन्ने रज्जे जाच अंतेउरे य माणुस्सएमु य कामभोगेसु मुच्छिए जाव अज्झोववन्ने नो संचाएमि जाव पवतित्तए, तं धन्नेऽसि णं तुम देवा! जाव जीवियफले, तते णं से कंडरीए अणगारे पुंडरीयस्स एयमढे णो आदाति जाव संचिट्ठति, तते णं कंडरीए पोंडरीएणं दोपि तचंपि एवं बुत्ते समाणे अकामए अवस्सबसे लज्जाए गारवेण य पोंडरीयं रायं आपुच्छति २ थेरेहिं सद्धिं बहिया जणवयविहारं विहरति, तते णं से कंडरीए थेरेहिं सद्धिं किंचि कालं उग्गउग्गेणं विहरति, ततो पच्छा समणत्तणपरितंते समणतणणिविणे समणत्तणणिन्भत्थिए समणगुणमुकजोगी घेराणं अंतियाओ सणियं २ पच्चोसकति २ जेणेव पुंडरिगिणी णयरी जेणेव पुंडरीयस्स भवणे तेणेव उवा० असोगवणियाए असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलापट्टगंसि णिसीयति २ ओहयमणसंकप्पे जाव झियायमाणे संचिट्ठति, तते णं तस्स पोंडरीयस्स अम्मघाती जेणेव असोगवणिया तेणेव MSRea SAREauratonintimational For P OW ~497

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