Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 12 Gyatadharmkatha Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
View full book text
________________
आगम (०६)
[भाग-१२] “ज्ञाताधर्मकथा"
श्रुतस्कन्ध: [२], ---------- वर्ग: [१], ---------- अध्ययनं [१-५], ---------- मूलं [१४८] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[०६] अंगसूत्र-[०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
कालिए णं भंते ! देवीए सा दिवा देविड्डी ३ कहिं गया० कूडागारसालादिढतो, अहोणं भंते ! काली देषी महिहिया, कालिए णं भंते । देवीए सा दिया देविड्डी ३ किण्णा लद्धा किपणा पत्ता किण्णा अभिसमण्णागया, एवं जहा सूरियाभस्स जाब एवं खलु गोयमा । तेणं कालेणं २ हेव जंधुदीवे २ भारहे वासे आमलकप्पा णाम णयरी होत्था वपणओ अंवसालवणे चेइए जियसत्तू राया, तत्थ णं आमलकप्पाए नयरीए काले नाम गाहावती होत्था अड्डेजाव अपरिभूए, तस्स णं कालस्स गाहावइस्स कालसिरी णामं भारिया होस्था, सुकुमाल जाव सुरूवा, तस्स णं कालगस्स गाहावतिस्स घूया कालसिरीए भारियाए अत्तया काली णामं दारिया होत्था, वडा वडकुमारी जुण्णा जुपणकुमारी पडियपुयस्थणी णिविन्नवरा वरपरिवज्जियावि होत्या, तेणं कालेणं २ पासे अरहा पुरिसादाणीए आइगरे जहा बहमाणसामीणवरं णवहस्थुस्सेहे सोलसहिं समणसाहस्सीहिं अदृत्तीसाए अजियासाहस्सीहिं सद्धिं संपरिवुडे जाव अंबसालवणे समोसढे परिसा णि जाव पज्जुवासति,तते णं सा काली दारिया इमीसे कहाए लट्ठा समाणी हट्ट जाव हियया जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवा०२ करयल जाव एवं व०-एवं खलु अम्मयाओ! पासे अरहा पुरिसादाणीए आइगरे जाव विहरति, तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुम्भेहि अन्भणुन्नाया समाणी पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स पायवंदिया गमित्तए, अहासुहं देवा! मा पडिबंध करेहि, तते णं सा कालिया दारिया अम्मापिथेहि अन्भणुनाया समाणी हह जाष हियया
~504

Page Navigation
1 ... 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522