Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 12 Gyatadharmkatha Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana

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Page 499
________________ आगम (०६) [भाग-१२] “ज्ञाताधर्मकथा " - अंगसूत्र - ६ ( मूलं + वृत्तिः) मूलं [१४१-१४७] श्रुतस्कन्ध: [१] अध्ययनं [१९], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र [०६] अंगसूत्र-[०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्तिः तरस कंडरीयरस रण्णो तं पणीयं पाणभोयणं आहारियस्स समाणस्स अतिजागरिएण य अहभोयमप्पसंगेण य से आहारे णो सम्मं परिणमइ, तते णं तस्स कंडरीयस्स रण्णो तंसि आहारंसि अपरिणममासि पुरता वरन्तकालसमयंसि सरीरंसि वेयणा पाउन्भूया उज्वला विडला पगाढा जाब दुरहियासा पित्तज्जरपरिगयसरीरे दावतीए याचि विहरति ॥ तते णं से कंडरीए राया रज्जे य रहे प अंतेउरे य जाव अज्झोववन्ने अदुहहबसट्टे अकामते अवस्सबसे कालमासे कालं किवा अहे सत्तमाए पुढवीए उक्कोसकालइियंसि नरयंसि नेरइयत्ताए उबवण्णे । एवामेव समणाउसो ! जाव, पचतिए समाणे पुणरवि माणुस्सर कामभोगे आसाइए जाव अणुपरियहिस्सति जहा व से कंडरीए राया (सूत्रं १४५ ) तते णं से पोंडरीए अणगारे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवा० २ थेरे भगवंते वंदति नमसति २ घेराणं अंतिए दोचंपि चाज्जामं धम्मं पडिवज्जति, छट्टखमणपारणगंसि पदमाए पोरिसीए सज्झायं करेति २ जाव अडमाणे सीयलुक्खं पाणभोयणं पडिगाहेति २ अहापजत्तमितिक पडिणियत्तति, जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवा० २ भत्तपाणं पडिदंसेति २ थेरेहिं भगवंतेहिं अन्भणुare समाणे अमुच्छिते ४ बिलमिव पण्णगभूएर्ण अप्पाणेणं तं फासुएसणिज्वं असण ४ सरीरको - गंसि पक्खिवति, तत्ते णं तस्स पुंडरीयस्स अणगारस्स तं कालाइकंतं अरसं विरसं सीयलुक्खं पाणभोणं आहारियस समाणस्स पुञ्चरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स से आहारे णो Eaton Internationa For Parts Only ~499~ ayor

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