Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 12 Gyatadharmkatha Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana

View full book text
Previous | Next

Page 461
________________ आगम (०६) [भाग-१२] “ज्ञाताधर्मकथा" - श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१६], ----------------- मलं [१२५-१३१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[०६], अंगसूत्र-[०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: देवी अन्नया कयाई पंहुसेणं रायाणं आपुच्छति, सते णं से पंडुसेणे राया कोडंबियपुरिसे सहावेति २ एवं वयासी-खिप्पामेव भो! देवाणु ! निक्षमणाभिसेयं जाव उवहवेह पुरिससहस्सपाहणीजो सिवियाओ उवट्ठवेह जाव पचोरुहंति जेणेव थेरा तेणेष. आलित्ते णं जाप समणा जाया चोइस्स पुवाई अहिज्जति २ बाहणि वासाणि छट्ठट्ठमदसमखुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं अप्पाणं भावमाणा विहरति (सूत्रं १२८) तते णं सा दोवती देवी सीयातो पचोरूहति जाव पञ्चतिया सुचयाए अज्याए सिस्सिणीयताए दलयति, इक्कारस अंगाई अहिजइ बहूणि वासाणि छट्ठमदसमदुवालसेहिं जाव विहरति(सूत्रं१२९) तते ण थेरा भगवंतो अन्नया कयाई पंहुमहरातो णयरीतो सहसंबवणाओ उज्जाणाओ पडिणिक्खमंति २ बहिया जणवयविहारं विहरंति, तेणं कालेणं २ अरिहा अरिहनेमी जेणेव सुरहाजणवए तेणेव उवा०२ सुरद्वाजणवयंसि संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति, तते णं बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमातिक्खइ०-एवं खलु देवाणुप्पिया ! अरिहा अरिहनेमी सुरद्वाजणवए जाब वि०, तते णं से जुहिडिल्लपामोक्खा पंच अणगारा बहुजणस्स अंतिए एपमढे सोचा अन्नमन्नं सद्दाति २ एवं व०-एवं खल देवाणु ! अरहा अरिहनेमी पुवाणु० जाव विहरइ, तं सेयं खलु अम्हंधेरा आपुच्छित्सा अरहं अरिहुनेमि चंदणाए गमित्तए, अन्नमन्नस्स एयमह पडिसुणेति २ जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव जवा०२ थेरे भगवते वदंति णमसंति २त्ता एवं व०-इच्छामो णं तुम्भेहिं अभणुनाया समाणा अरहं अरिह ~461

Loading...

Page Navigation
1 ... 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522