Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 12 Gyatadharmkatha Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana

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Page 474
________________ आगम (०६) [भाग-१२] “ज्ञाताधर्मकथा" - श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१७], ----------------- मूलं [१३२-१३४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[०६] अंगसूत्र-[०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: कथाङ्गम्म १७अश्व ज्ञाता. इन्द्रियास ॥२३२॥ दोषगुणाः सू. १३५ मलयानि-मलयदेशोत्पन्नाः वसविशेषाः, पाठान्तरेण 'मसगाण य'ति मशका:-कृत्तिमण्डिताः वखविशेषाः शिलापट्टाः- मृणशिलाः, 'समियस्स'चि फणिकायाः, 'खलिणबंधेहि यत्ति खलिनैः-कविकः, 'उवीलणेहि य'ति अवपीडनाभि- न्धनविशेषैः, पाठान्तरे 'अहिलाणेहि' मुखबन्धनविशेषैः 'पडियाणएहि य'त्ति पटतानकं पर्याणस्वाधो यद्दीयते इति, शेष प्रायः प्रसिद्धं । अथेन्द्रियासंबृतानां स्वरूपस्खेन्द्रियासंवरदोषस्य चाभिधायक गाथाकदम्बकं वाचनान्तरेऽधिकमुपलभ्यते, तत्र कलरिभियमहुरतंतीतलतालवंसकउहाभिरामेसु । सद्देसु रज्जमाणा रमंती सोहंदियवसहा ॥१॥ सोइंदियदुहन्तत्तणस्स अह एत्तिओ हवति दोसो । दीविगरुयमसहंतो वहबंधं तित्तिरो पत्तो ॥ २ ॥ धणजहणवणकरचरणणयणगवियविलासियगतीसु । रुवेसु रज्जमाणा रमंति चक्खिदियवसहा ॥३॥ चक्खिदियदुईतत्तणस्स अह एत्तिओ भवति दोसो । जं जलणंमि जलते पडति पर्यगो अबुद्धीओ॥४॥ अगुरुवरपवरघूवणउउयमल्लाणुलेवणविहीसु । गंधेसु रज्जमाणा रमंति पाणिदियवसा ॥५॥ पाणिदियदुईतत्तणस्स अह एत्तिओ हवह दोसो । ज ओसहिगंधेणं बिलाओ निद्धावती उरगो ॥६॥ तित्तकडुयं कसायंब महुरं बहुखजपेजलेझेसु आसायंमि उ गिद्धा रमति जिभिदियवसहा ॥७॥ जिभिदियदुईतत्तणस्स अह एत्तिओ हवह दोसो। जंगललग्गुक्खित्तो फुरह थलविरल्लिओ मच्छो ॥८॥ उउभयमाणसुहेहि य सविभवहिययगमणनिब्बुइकरेसु । फासेसु रजमाणा रमंति फासिं दियव ae | ||२३२॥ I ~4744

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