Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 12 Gyatadharmkatha Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana

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Page 456
________________ आगम (०६) [भाग-१२] “ज्ञाताधर्मकथा" - श्रुतस्क न्ध : [१] ----------------- अध्य यनं [१६], ----------------- मलं [१२५-१३१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[०६], अंगसूत्र-[०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: ज्ञाताधर्मकथाङ्गम्. १६ अपरकङ्काज्ञा वासुदेवयोः शङ्कशब्दमेल: सू.१२५ २२३॥ मसंमज्झेणं वीतिवयमाणस्स सेयापीयाई धयग्गाति पासिहिसि, तते गं से कविले वासुदेवे मुणिमुवयं वंदति २ हत्थिखंचं दुरूहति २ सिग्धं २ जेणेव वेलाउले तेणेव उ०२ कण्हस्स वासुदेवस्स लवणसमुई मज्झमझेणं वीतिवयमाणस्स सेयापीयाहिं धयग्गाति पासति २ एवं चयइ-एस णं मम सरिसपुरिसे उत्तमपुरिसे कण्हे वासुदेवे लघणसमुदं मझमझेणं बीतीवयतित्तिकट्ठ पंचयन्नं संखं परामुसति मुहवायपूरियं करेति, तते णं से कण्हे वासुदेवे कविलस्स वासुदेवस्स संखसई आयन्नेति २ पंचयनं जाव पूरियं करेति, तते गं दोवि वासुदेवा संखसद्दसामायारिं करेति, तते णं से कविले वासुदेवे जेणेव अमरकंका तेणेव उ०२अमरकंक रायहाणि संभग्गतोरणं जाव पासति २ पजणणाभं एवं व०-किन्न देवाणुप्पिया! एसा अमरकंका संभग्ग जाव सन्निवश्या ?, तते णं से पउमणाहे कविलं वासुदेवं एवं व०-एवं खलु सामी! जंबुद्दीवाओ दीवाओ भारहाओ वासाओ इहं हवमागम्म कण्हेणं वासुदेवेणं तुम्भे परिभूय अमरकंका जाव सन्निवाडिया, तते णं से कविले वासुदेवे पउमणाहस्स अंतिए एयमई सोचा पउमणाह एवं व-हं भो! पउमणाभा! अपत्थियपत्थिया किन्नं तुम न जाणसि मम सरिसपुरिसस्स कण्हस्स वासुदेवस्स विप्पियं करेमाणे?, आसुरुत्ते जाव पउमणाहं णिविसयं आणवेति, पउमणाहस्स पुत्तं अमरकंकारायहाणीए महया २ रायाभिसेएणं अभिसिंचति जाव पडिगते (सूत्रं १२५) तते णं से कण्हे वासुदेवे लवणसमुई मज्झमझेणं वीतिवयति, ते पंच पड़वे एवं व० ॥२२३॥ ~4560

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