Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 12 Gyatadharmkatha Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana

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Page 447
________________ आगम (०६) [भाग-१२] “ज्ञाताधर्मकथा" - श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१६], ----------------- मूलं [१२०-१२४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[०६] अंगसूत्र-[०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: णं से पउमणाभे राया तिभागवलावसेसे अत्थामे अवले अवीरिए अपुरिसक्कारपरकम्मे अधारणिजत्तिकटु सिग्घं तुरियं जेणेव अमरकंका तेणेच उ०२ अमरकंक रायहार्णि अणुपविसति २ दारार्ति पिहेति २रोहसज्जे चिट्ठति, तते णं से कण्हे वासुदेवे जेणेच अमरकंका तेणेव उ०२ रहं ठवेति २ रहातो पचोरूहति २ वेउवियसमुग्धाएणं समोहणति, एगं महं णरसीहरूवं विउबति २ महया २ सद्देणं पाददद्दरियं करेति, तते णं से कण्हेणं वासुदेवेणं महया २ सद्देणं पाददइरएणं करणं समाणेणं अमरकंका रायहाणी संभग्गपागारगोपुरांद्यालयचरियतोरणपल्हस्थिपपवरभवणसिरिधरा सरस्सरस्स धरणियले सन्निवइया, तते णं से पउमणाभे राया अमरकंक रायहाणिं संभग्ग जाव पासित्ता भीए दोवतिं देवि सरणं उवेति, ततेणं सा दोबई देची पउमनाभं रायं एवं व०-किपणं तुमं देवा ! न जाणसि कण्हस्स वासुदेवस्स उत्तमपुरिसस्स विप्पियं करेमाणे ममं इह हबमाणेसि, तं एवमवि गए गच्छह णं तुम देवा! पहाए उल्लपडसाडप अवचूलगवत्थणियत्थे अंतेजरपरियालसंपरिखुडे अग्गाई चराई रयणाई गहाय मम पुरतो कार्ड कण्हं वासुदेवं करयलपायपडिए सरणं उवेहि, पणिवइयवच्छला गं देवागुप्पिया! उत्तमपुरिसा, तते णं से पउमनाभे दोवतीए देवीए एयमढे पडिमुणेति २ण्हाए जाब सरणं उवेति २ करयल० एवं व०-दिहा ण देवाणुप्पियाणं इड्डी जाव परकम्मे तं खामेमि णं देवाणुप्पिया! जाव खमंतु णं जाव णाहं भुजो २ एवंकरणयाएत्तिकट्ठ पंजलिवुडे पायवडिए कण्हस्स वासुदेवस्स Receeseseoceaedees ~447

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