Book Title: Sanch Ko Aanch Nahi
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

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Page 12
________________ G007 “सांच को आंच नहीं” (0902 चेइयाणि वा वंदित्तए वा नमंसित्तए वा ।" ___यहां अन्य तीर्थिकों से परिगृहीत जिनप्रतिमाओं को वंदन न करने के नियम से अन्य तीथिकों से अपरिगृहीत जिन प्रतिमाओं को वन्दन की सिद्धि होती है। - श्री कल्पसूत्र में भी सिद्धार्थ राजा ने हजारों की संख्या में जिन प्रतिमा पूजन करवाने का “याग” शब्द से उल्लेख है । ___ श्री व्यवहार सूत्र में जिन प्रतिमा के सन्मुख आलोचना (प्रायश्चित) करने का उल्लेख हैं। . श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र में निर्जरार्थी को चैत्यहेतुक वैयावच्च करने का आदेश है - “चेइयडे......... इत्यादि” साधु को अर्थात् प्रतिमा की हिलना, अवर्णवाद और अन्य आशातनाओं का निवारण करने का कहा है। ___श्री दीपसागरपन्नति सूत्र में कहा है कि स्वयंभूरमण समुद्र में जिन प्रतिमा के आकार वाले मत्स्य होते है, जिनको देखकर जातिस्मरण होने से तिर्यंच जलचरों को सम्यक्त्व प्राप्ति होती है। श्री भगवती सूत्र के प्रारम्भ में ही ब्राही लिपि को भी नमस्कार किया इस प्रकार अनेक शास्त्र - आगम सूत्रों से मूर्तिपूजा सिद्ध होती है। मूर्तिपूजा से लाभ होता है या नहीं ? - यह तो करनेवाला ही जान सकता है, नही करनेवाले को क्या पता ? हां ! कोई इक्षुरस की मधुरता का चाहे कितना भी अपलाप करे किन्तु उसका आस्वाद करने वाला तो उसके मधुर रस का साक्षात् ही अनुभव करता है । स्थानकवासी और तेरापंथी बन्धु और साधु-संतों से यह अनुरोध है कि वे सभी समुदाय में या अकेले एक मास स्वयं जिन-मूर्ति की उपासना करके अनुभव करे कि उसमें लाभ होता है या नहीं ? हस्त कंकण को कभी दर्पण की जरूरत नहीं होती। मूर्तिपूजा के समर्थक लेख और निबन्धों से विगत कुछ वर्षों में यह 8

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