Book Title: Sanch Ko Aanch Nahi Author(s): Bhushan Shah Publisher: Chandroday ParivarPage 11
________________ -6000 “सांच को आंच नहीं" (0902 शेखर श्री उमास्वाति आचार्य महाराज कृत पूजा प्रकरण, १४ पूर्वी पूज्य भद्रबाहुस्वामी महाराज कृत आवश्यक नियुक्ति आदि, आचार्य श्री हरिभद्रसूरि महाराज कृत पूजा पंचाशक प्रकरण, षोड़शक प्रकरण और श्रावक प्रज्ञप्ति टीका एवं ललितविस्तरा ग्रन्थ, आचार्य श्री शांतिसूरिजी महाराज कृत चैत्यवंदन बृहदभाष्य, अवधिज्ञानी श्री धर्मदासगणि महाराजकृत उपदेशमाला, कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य महाराज कृत योग शास्त्र आदि ग्रन्थ, नवांगी टीकाकार आचार्य श्री अभयदेवसूरि महाराज कृत पंचाशक वृत्ति । तदुपरान्त श्री ज्ञाता धर्मकथा सूत्र, ठाणंग सूत्र, रायपसेणी सूत्र, जीवाभीगम सूत्र, महा प्रत्याख्यान सूत्र, महाकल्पसूत्र, महानिशीथ सूत्र इत्यादि मूल अंग-उपांग सूत्रों में भी मूर्तिपूजा के अनेक उल्लेख भरे पड़े है। ___महा कल्पसूत्र मे गौतम स्वामी के प्रश्नोत्तर में श्री महावीर भगवान ने कहा - “जो श्रमण जिन मंदिर को न जाय उसे बेला या पांच उपवास का प्रायश्चित आता है, उसी तरह श्रावक को भी।” तथा इसी सूत्र में कहा है - जो श्रावक जिन पूजा नहीं मानते वे मिथ्यादृष्टि है । तथा सम्यग्दृष्टि श्रावक को जिनमन्दिर में जाकर चन्दन-पुष्पादि से पूजा करनी चाहिए। ___ श्री भगवती सूत्र में - तुंगीया नगरी के श्रावकों ने स्नान करके देवपूजन किया यह उल्लेख है - “हाया कयबलिकम्मा” श्री उववाई सूत्र में चम्पा नगरी के वर्णन में “बहुलाइ अरिहंत चेइयाइ” बहुत से अरिहन्त चैत्यों यानी जिन मंदिर का उल्लेख है। ___ श्री भगवती सूत्र में चमरेन्द्र के अधिकार में तीन शरण दिखाये है - “अरिहंते वा अरिहंत चेइयाणि वा भाविअप्पणो अणगारस्स वा।” यहां अरिहंत चेइयाणि का अर्थ अरिहंत की प्रतिमा एसो होता है। ___श्री उपासकदशांग आगम सूत्र में आनन्द श्रावक के अधिकार में जिन प्रतिमा वंदन का उल्लेख है - “नो खलु में भंते ! कप्प............. अन्नउत्थिय परिग्गहियाणि अरिहंत 7Page Navigation
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