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4-0 “सांच को आंच नहीं" ( 00900-2 ___ (३) १० प्रकीर्णक भी नंदीसूत्र निर्दिष्ट प्रत्येक बुद्ध आदि रचित प्रकीर्णक होने से माने जाते है। ___(४) नंदीसूत्र देववाचक (देवर्धिगणि) के द्वारा रचित होने पर भी सर्वमान्य है । अनुयोगद्धार आयरक्षितसूरिजी रचित है, जो साढे नौ पूर्वधर होने पर भी सर्वत्र मान्य है।
(५) दशवैकालिक सूत्र - १४ पूर्वी शय्यंभवसूरिजी रचित है, उत्तराध्ययन सूत्र तीर्थंकर, प्रत्येक बुद्ध आदि की वाणी है । ___ओघनियुक्ति, पिंडनियुक्ति अथवा आवश्यक नियुक्तियाँ १४ पूर्वधर भद्रबाहु स्वामी की होने से मान्य है।
(६) निशिथ सूत्र १४ पूर्वधर कालीन विशिष्ट श्रुतधर विशाखाचार्य
कृत है।
__- दशा-कल्प-व्यवहार सूत्र भद्रबाहुस्वामीजी कृत है। _____ महानिशीथ सूत्र युगप्रधान हरिभद्रसूरिजी द्वारा प्राचीन प्रतीं में से उद्धृत किया गया था एवं उसका नंदीसूत्र आदि में निर्देश भी मिलता है तथा जिनशासन के ज्योतिर्धर युगप्रधान मध्यस्थ शिरोमणि हरिभद्रसूरिजी ने उपधान पंचाशक में महानिशीथ सूत्र की प्रामाणिकता भी सिद्ध की है।
__जीतकल्प : संघयण आदि क्षीण होने पर द्रव्य क्षेत्र काल भाव के अनुसार संयम मर्यादा का सुचारु रुप से पालन होवें एवं उचित आलोचना - प्रायश्चित के द्वारा शुद्धि हो सके, इस हेतु निशीथ आदि के आधार से परम गीतार्थ ऐसे बृहत्संग्रहणीकार (जिसकी गाथा के आधार पर आगम की निर्धारणा आपने की है) जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण के द्वारा यह जीतकल्प रचा गया है। अत आलोचना - प्रायश्चित आदि प्रतिपादक इस ग्रन्थ को आगम मानने में कोई हर्ज महसूस नहीं होता है।
इस तरह भवभीरु संविग्न गीतार्थ गुरु - भगवतों की सुविशुद्ध परंपरा से आयी हुई ४५ आगम की इस मान्यता में किसी कुशंका को अवकाश नहीं
रहता है।
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