Book Title: Sanch Ko Aanch Nahi
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

Previous | Next

Page 122
________________ -60 “सांच को आंच नहीं" (209602 मौजुद है । परंतु वर्तमान में वाद-विवाद का जमाना नहीं है और परिस्थितियाँ ऐसी है कि आपके जैसे कोई जिज्ञासु आवें तो उन्हें तत्त्व का बोध देने की ही भावना रहती है। ___ ऐसे भी तत्त्व रुचिवाले लोग ही कम होते है । उनमें भी कुछ लोग ही सत्त्वशाली होते है, जैसे कि आत्मारामजी म.सा. (विजयानंदसूरिजी), गयवरमुनि (ज्ञानसुंदरजी म.सा.) वगरैह जिन्होंने सत्य का ज्ञान पाने पर अपने मत को छोडकर सत्य मार्ग पर चलने का पुरुषार्थ किया है। कुछ लोग ऐसे होते है जो सत्य को समझते है परंतु प्रवृत्त गलत आचरण को छोड नहीं सकते है । जैसेकि विधानसंत संतबालजी म.सा. निडरतापूर्वक कहते है - “मुखबंधन श्री लोकाशाह ना समयथी शरु थयेल नथी परंतु त्यारबाद थयेला स्वामी लवजी ना समय थी शरु थयेल छे अने ए जरुरी पण नथी” (जैन ज्योति ता. १८-५-१९३६ पृ. ७) __और तेरापंथी आचार्य महाप्रज्ञजी ने भी निष्पक्षतापूर्वक स्वीकार किया है कि मुंहपत्ति बांधने की प्रथा नयी चालु हुई है । मुंह पर बांधने की पट्टी यह 'मुखवस्त्रिका' का अर्थ नहीं है । (तत्त्व बोध से साभार उद्धृत) ___ परंतु ऐसे निष्पक्षतापूर्वक सत्य का अन्वेषण करके उसका स्वीकार करने वाले भी कम होते है । इसलिए 'समझदार जिज्ञासु होगा वह समझेगा इसी उद्देश्य से सत्यमार्ग का उपदेश देना उचित लगता है। जिज्ञासु : आपने शत-प्रतिशत संतोषकारी जवाब देकर मेरी जिज्ञासा को संतोष दिया है और मुझे सन्मार्ग का बोध कराया है । आज से मैं सामायिक में मुंहपत्ति को मुंह पर बांधुगा नहीं । प्राय: मौन रखंगा एवं प्रयोजन आने पर हाथ से मुंहपत्ति को मुंह के आगे रखकर बोलुंगा । इसमें प्रमाद नहीं करूंगा तकि वचनत्रुप्ति एवं भाषा समिति का सही पालन हो सकेंगे । आपने मुझे सन्मार्ग का ज्ञान देकर मिथ्यात्व प्रमाद, लिंगभेद, आज्ञाभंग, संयम विराधना आदि अनेक दोषों से बचाव महान उपकार किया हैं, उसका अत्यंत ऋणी रहुंगा। मत्थएण वंदामि। (118

Loading...

Page Navigation
1 ... 120 121 122 123 124