________________
-6000 “सांच को आंच नहीं" 109002 वायुकाय की रक्षा को लेकर २४ घंटे मुंहपत्ति बांधना आगमकारों को इष्ट नहीं है और वर्तमान में भी बांधी जानेवाली मुंहपत्ति से भी वायुकाय की रक्षा का प्रयोजन भी सिद्ध नहीं होता है।
जिज्ञासु :- तहत्ति ! आपश्री तो ज्ञान के सागर हो ! आपश्रीने आगम के पाठ एवं व्यवहारिक दृष्टांत से सटीक समाधान दिया है।
सद्गुरु :- एक प्रश्न पुर्छ ? बुरा तो नहीं लगेला ? जिज्ञासु :- पुछिए !
सद्गुरु :- क्या स्थानकवासी संत आदि आहार (गोचरी) करते समय मुंहपत्ति को मुंह पर बांधकर रखते है या उसे खोलते है ?
जिज्ञासु :- खोलते ही है, क्योंकि उसके बिना आहार कैसे ग्रहण कर सकेंगे ?
सद्गुरु : सही बात है । हमने भी उन्हें मुंहपत्ति निकालकर आहार करते हुए देखा है। ___अब दुसरा प्रश्न, अगर उन्हें आहार करते समय कोई कार्य आ जावें तो वे कैसे बोलेंगे?
जिज्ञासु : पहली बात तो वे मौन रखते होंगे एवं अति जरुरी प्रयोजन आने पर हाथ या वस्त्रादि को मुंह के आगे रखकर बोलते होंगे। ...सद्गुरु : अरे ! वे ऐसा क्यों करते हैं ! आपके हिसाब से उन्हें तो हाथ एवं मुंह धोकर, पुन: मुंहपत्ति को मुंह पर बांधकर, बोलकर अपना कार्य निपटाकर पुन: उसे खोलकर आहार क्रिया को आगे बढाना चाहिए।
जिज्ञासु : ऐसा करना तो अव्यवहारिक है । आहार करते समय तो हाथ या वस्त्र आदि से यतना करना ही उचित है।
सद्गुरु : अगर आहार करते समय हाथ या मुंहपत्ति आदि के द्वारा यतना हो सकती है, तो पुरे दिन में जब प्रयोजन आवें (सामान्यत: मुनि मौन रखते है), तब मुंहपत्ति को आगे रखकर यतना करने में क्या हर्ज है । पुरे दिन निष्कारण मुंहपत्ति बांधे रखना क्या अव्यहारिक नहीं है ?
-