Book Title: Sanch Ko Aanch Nahi
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

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Page 113
________________ "सांच को आंच नहीं" में सद्गुरु :- क्या स्थानकवासी संत आदि, आगम में मुंहपत्ति के प्रयोजनों की रक्षा को नहीं बताये जाने पर भी, उसे ही वायुकाय प्रयोजन मुख्य मानने की अपनी महत्वपूर्ण धारणा को मंदिरमार्गीओं के ग्रन्थों के आधार से ही मानते है ? अगर ऐसा है तो वे 'योगशास्त्र' में निर्दिष्ट अन्य बातों को क्यों नहीं मानते है ? तथा योगशास्त्र में भी वायुकाय की रक्षा हेतु २४ घंटे मुंहपत्ति बांधना बताया नहीं है । अस्तु, यह तो केवल प्रासंगिक बात बतायी है । योगशास्त्र में भी वायुकाय के जीवों की रक्षा की बात उपष्टम्भक हेतु के रुप में ही है । सर्वप्रथम तो आगम निर्दिष्ट मुख्य प्रयोजन रुप “ संपातिम जीवों ( उडनेवाले सूक्ष्म जीव ) की रक्षा" को ही बताया है और ये सब प्रयोजन हाथ में रखी हुई मुंहपत्ति को मुंह के आगे रखने से भी सिद्ध ही है । योगशास्त्र का पाठ इस तरह है : मुखवस्त्रमपि सम्पातिमजीवरक्षणादुष्णमुखवातविराध्यमान - बाह्यवायुकायजीवरक्षणान्मुखे धूलिप्रवेशरक्षणाच्चोपयोगि । (योगशास्त्र तृतीय प्रकाश) जिज्ञासु :- मत्थएण वंदामि ! आगमों में मुंहपत्ति के प्रयोजनों में 'वायुकाय की रक्षा' को क्यों नहीं गिना है ? सद्गुरु :- देखो ! वायुकाय अतिसूक्ष्म एवं सर्वत्र व्याप्त है, अत: अपने विहार, पडिलेहण आदि हर संयम योगों से अपरिहार्य रूप से उनकी विराधना तो होती ही है, यहाँ तक कि मुंहपत्ति को बांधकर बोला जावे, तब भी मुंह और मुंहपत्ति के बीच में रहे हुए असंख्य वायुकाय के जीवों की सामान्य रुप से विराधना होती ही है । इस कारण से, आगमों में कहीं पर भी "खुले मुंह बोलने से या मुह ढककर बोलने से वायुकाय की हिंसा होती है, ” इसलिए "मुंहपत्ति बांधो या मौन रहो ऐसा विधान नहीं किया गया है। परंतु ” “ न फुमेज्जा, न वीएज्जा” इत्यादि के द्वारा जिसमें मुख्यरूप से वायुकाय की विराधना होती है, जैसे कि 109

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