Book Title: Sanch Ko Aanch Nahi
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

Previous | Next

Page 105
________________ -60 “सांच को आंच नहीं” (0902 आगम मे क्यों नहीं मानते हैं ? - प्रश्न-३२ का उत्तर :- इसका जवाब प्रश्न १९ के जवाब में आ गया है। प्रश्न-३३ का उत्तर :- श्रावक के कर्तव्य या किसी धर्मानुष्ठान का फल निरूपण करने के स्वरुप मार्ग प्ररूपणा करना सावद्य भाषा में नहीं आता है, वह प्रज्ञापनी भाषा कहलाती हैं । उसमें मंदिर, पूजा, सामायिक, पौषध, तप, दीक्षा, स्वाध्याय आदि सब आते है । क्या स्थानकवासी संत धोवन पानी पीने की, गुरु-वंदन, जीवदया आदि की प्रेरणा नहीं करते है ? इन प्रेरणाओं को लेकर अगर कोई धोवन पानी का उपयोग चालु करें, या चातुर्मासादि में गुरुवंदन आदि करने जावें, गाय आदिको घास एवं कबुतर आदि को चुग्गा डालेंगे, उसमें जो अपकाय, वनस्पतिकाय वगैरह की विराधना होती है, तो क्या उसमें उनके गुरुओं को पाप लगेगा ? हाँ उसमें अगर कोई भी साधु भगवंत किसी भी सावध क्रिया की Direct प्रेरणा करेंगे, तो उसमें आज्ञापनी भाषा का दोष तो लगता ही है । परंतु मार्ग प्ररूपणा या कर्तव्य-निरुपण में दोष नहीं लगता है। प्रश्न-३४ का उत्तर :- देवलोक में शाश्वत प्रतिमाएँ एवं उनके नाम विषयक शंकाओं के उत्तर “शास्त्र पाठ से चोरियाँ” की समीक्षा प्रकरण तथा "मूर्तिपूजकों के धर्म की विचारणा” की समीक्षा प्रकरण में दिये जा चुके हैं। प्रश्न-३५ का उत्तर :- मुहपत्ति आदि नाम होते हुए भी हाथ में रखने के विषयक प्रश्न का 'मुखवस्त्रिका वार्ता की समीक्षा' प्रकरण में विस्तार से उत्तर दे चुके हैं, फिर भी आपके संतोष हेतु यहाँ पर भी उत्तर दिया जाता है - रजोहरण का अर्थ 'रज को हरण करने वाला' होता है । आपके हिसाब से तो रजोहरण पुरे दिन धुल को हटाने में काम लिया जाता रहे, तो ही वह रजोहरण कहलायेगा, परंतु आप तो रजोहरण को बहुलतया कंधे पर ही धारण किये हुए रहते हो । तो वह रजोहरण कैसे कहलायेगा ? . तीर्थंकर का अर्थ 'तीर्थ की स्थापना करनेवाला' तो क्या भगवान महावीर तीर्थ की स्थापना के बाद ३० साल पृथ्वीतल पर विचरें तब वे तीर्थंकर (101 -

Loading...

Page Navigation
1 ... 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124