Book Title: Sanch Ko Aanch Nahi
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

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Page 110
________________ -G6000 “सांच को आंच नहीं" / 09/02 (vii) गृहस्थ के लिए मूर्तिपूजा हितकारी होती है, देखिये महानिशीथ सूत्र का पाठ 'तेसिय तिलोयमहियाण धम्मतित्थगराण जगगुरुणं भावच्चण दबच्चण भेएण दुहच्चणं भणियं भावच्चणं चरित्ताणुट्ठाण - कटुग्ग घोर तव चरण, दव्बच्चणं, विरयाविरय-सील-पूया सक्कारदाणाइ । तो गोयमा एसथ्थे परमथ्थे । तं जहा, भावच्चणमुग्गविहारयाय दव्यच्चणं तु जिन-पूया । पढमा जईण दोन्निवि गिहीण ॥ - इस प्रकार स्पष्ट, पूजा के दो भेद बताकर “मुनि को भाव पूजा ही है, श्रावक को द्रव्य-भाव यह दोनों पूजा है” इस परमार्थ सत्य को महानिशीथ सूत्र में बताया गया है। ... (viii) गणिविज्जा प्रकरण में - - 'धणिट्ठा सयभिसा साईस्सवणो अ पुणव्वसु । एएसु गुरुसुस्तूंस चेइआणं च पूअणं ॥१॥ 'जैसी दे वैसी मिले, कुए की गुंजार' ___ के लेखक की मनोदशा मनोवत्सो युक्तिगवीं मध्यस्थस्यानुधावति, तामाकर्षति पुच्छेन तुच्छाग्रह मन:कपि ॥ ___मध्यस्थ मनुष्य और कदाग्रही तुच्छाग्रहवाले मनुष्य में यह फर्क है कि जैसे गाय का बच्चा, गाय का सहजता से अनुसरण करता है, वैसे मध्यस्थ व्यक्ति का मन सद्युक्ति का अनुसरण करता है । जबकि कदाग्रही युक्ति को अपनी तरफ खींचता है, यानि अपनी मानी हुई वस्तु को सिद्ध करने में कुयुक्ति दौडाता है, जैसे कोई बंदर पुंछ पकडकर गाय को अपनी तरफ खींचता है। यह अनुभव गुंजार में अनेक स्थानों पर होता है जैसे कि - (१) सपूत बनने के लिए “पूर्वाचार्य हमारे हैं” “हम उनकी संतान हैं" - 106

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