Book Title: Sanch Ko Aanch Nahi
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

View full book text
Previous | Next

Page 88
________________ 4-60 “सांच को आंच नहीं” (0902 __ (II) रसज संसक्त में रसज यानि प्रवाही द्रव्य में उत्पन्न हुए अतिसूक्ष्म जीव जो पृथक् नहीं किए जा सकते हैं, अत: यहाँ पात्रसहित मूलद्रव्य को परठना बताया है। ___ श्वेतांबर में हेमचंद्रसूरिजी वगैरह अनेक पूर्वाचार्यों ने मक्खन को अभक्ष्य माना है। दिगंबर भी इसे अभक्ष्य मानते है । दिगंबराचार्य अमृतचन्द्रजी रचित 'पुरुषार्थ सिद्धयुपाय ग्रंथ (करीब ११०० वर्ष प्राचीन) में भी मक्खन में जीवोत्पत्ति मानकर उसे अभक्ष्य गिना है।' - नवनीतं च त्याज्यं योनिस्थानं प्रभूतजीवानाम् । .. यदापि पिण्डशुद्धौ विरुद्धमभिधीयते किञ्चित् ॥१९३॥ स्थानकवासी के महान आचार्य श्री अमोलक ऋषिजी भी मक्खन को अभक्ष्य बताते हैं । देखें उन्हीं के शब्द - “छाछ से अलग होने के बाद थोडे ही समय में मक्खन में कृमि आदि जीवों की उत्पत्ति हो जाती है । उसमें लीलन - फूलन भी आ जाती है । इसके अतिरिक्त मक्खन काम विकार उत्पन्न करने वाला होने से भी अभक्ष्य है।” (जैन तत्त्व प्रकाश - पृ. ४९७) इस प्रकार पूर्वाचार्यों की प्राचीन परंपरा से उसमें जीवोत्पत्ति मानी जाती है । अत: मक्खन का निर्णय अतीन्द्रियज्ञानीगम्य है। टेढे प्रश्नोंकेसीधे - सचोट उत्तर आगमादि के विषयमें पूछे गये प्रश्नों के उत्तर पाने के पहले इतना समझना आवश्यक है कि - पूर्वकाल में आगम कंठस्थ थे एवं शिष्यों को आचार्य सूत्र कंठस्थ कराने के साथ-साथ अर्थ की वाचना देते थे, वे उसमें से कुछ को धारण करते थे, कुछ को कंठस्थ करते थे, कुछ पदार्थ आचार्य श्री संग्रहणी गाथाओं के द्वारा संकलित करके देते थे एवं अर्थविश्लेषण अपनी शैली से करते थे। __ कंठस्थ करने की परंपरा में सूत्र, नियुक्ति, संग्रहणी आदि सभी को पृथक्-पृथक् रुप से अवधारण करके रखा जाता था। NE 84

Loading...

Page Navigation
1 ... 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124