Book Title: Sanch Ko Aanch Nahi
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

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Page 94
________________ " सांच को आंच नहीं " निक्षेप किये । फिर गाथा ३ से ६१ तक उसकी विशद विवेचना की जिसमें प्रसंगोपात पर्युषणा की बातें भी आ गयी, परंतु मूलसूत्र की विवेचना इन ६१ श्लोकों में नहीं की गयी है । इस प्रकार ८वीं दशा की भूमिका में ६१ श्लोक हो जाने के बाद ६२ वे श्लोक में वर्णन विभाग का सूचन किया एवं आगे ५ गाथा में मूल पर्युषणाकल्प के मुख्य विषय के कुछ अंशों की विवेचना की है । निर्युक्ति में मुख्य विषय की विवेचना पहले की गयी है और वर्णन विभाग की विवेचना बाद में की है, अतः वह प्रक्षिप्त है इत्यादि प्रक्षेप की कल्पना की बातें, उपरोक्त रीति से सूक्ष्म अवलोकन करने पर असत्य सिद्ध हो जाती है । तथा १००० श्लोक प्रमाण वर्णन विभाग का एक श्लोक से संकेत करने के पीछे रहस्य यह है कि वर्णन विभाग सुगम होने से उसका विस्तार नहीं किया गया है । इसी तरह निर्युक्ति में हर जगह लाघव दिखाई देता है, टीकाकार उसका यथोचित विश्लेषण करते है । इसीलिए भूमिका के ६१ श्लोक में प्रासंगिक रुप से पर्युषणा विषयक विशद विवेचन हो जाने से नियुक्ति में केवल ५ श्लोक में ही वर्णन किया है । प्रश्न-५, ६, ७, का उत्तर - तीनों प्रश्नों में कल्पसूत्र में भद्रबाहुस्वामी के बाद के आचार्यों को नमस्कार ९८० व ९८३ के उल्लेखोंको लेकर प्रक्षिप्त कर बढाने वगैरह की ही बातें लिखी है । एक विषयक होने से उन सबका जवाब साथ में ही दिया जाता है । निशीथ भाष्य एवं चूर्णि से स्पष्ट होता है कि पूर्वकाल में, पांच रात्रि में, पर्युषण कल्प का वांचन चातुर्मासकी स्थापना पहले किया जाता था, जिसमें वर्षाकाल संबंधी उत्सर्ग - अपवादों का सामान्य से निरूपण किया जाता था । इन आचारों के वर्णन के पूर्व चातुर्मास में विशिष्ट आराधना की प्रेरणा हेतु तथा अपनी गौरववंती गुरुपरंपरा के इतिहास को जीवंत रखने हेतु २४ तीर्थंकर, उनके परिवार, गणधर भगवंत तथा स्थविरों के चरित्र पढे जाते थे । 90

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