Book Title: Sanch Ko Aanch Nahi
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

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Page 44
________________ 60 “सांच को आंच नहीं” (0902 १. स्वरुप हिंसा - जीव मरे या जीवों को दुःख होवे । स्वरूप अहिंसा - जीवन न मरे या उनको दुःख न होवें । २. हेतु हिंसा - हिंसा का मुख्यकारण अयतना - जीव न मरे उसका ध्यान न रखना, उपयोग न रखना, यह हेतु हिंसा । हेतु अहिंसा - यतना रखनी - जीव न मरे उसका ध्यान रखना . ३. अनुबंध हिंसा - जिस प्रवृत्ति से परिणाम में हिंसा हो, जिसका फल हिंसा हो। _ अनुबंध अहिंसा - जिस प्रवृत्ति से परिणाम में अहिंसा हो, जिसका फल अहिंसा हो। अनुबंध हिंसा - अहिंसा में ध्येय की मुख्यता है । अहिंसा का पालन किस आशय से कर रहा है या हिंसा किस आशय से कर रहा है, उससे उसका निर्णय होता है । अभव्य का जीव सूक्ष्म चारित्र पालन करें, सूक्ष्म अहिंसा का पालन करें तो भी ध्येय शुद्धि न होने से उसे अनुबंध हिंसा होती है । सुसाधु -- नदी उतरता है तो भी उसे अनुबंध अहिंसा होती है। तभी तो अरणिकापुत्र आचार्य को नदी उतरते खुद के शरीर के खून से अप्काय के जीवों की हिंसा होते हुए भी केवलज्ञान की प्राप्ति और मोक्षगमन हो सका । (इसके विस्तृत विवेचन के लिये देखिए - 'जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा' पृ. २१२ से पृ. २२३) ___ मंदिर निर्माण - जिनपूजादि में यतना और ध्येय की शुद्धि होने पर,. वहाँ भी पारमार्थिक अनुबंध अहिंसा है । देखिये पूर्वाचार्यों के वचन - सतामस्य कस्याचिद् यतना भक्तिशालिनाम् । अनुबन्धो ह्यहिंसाया जिनपूजादिकर्मणि ॥ खास बात तो यह है कि - मंदिर निर्माण - जिनपूजादि के अधिकारी । साधु नहीं परंतु श्रावक है । साधु सावद्य योगों से मन-वचन-काया से निवृत्त । है। श्रावक तो संसार में बैठा है, हिंसा रोजाना जीवन में चालु ही है । दुसरी अनेक प्रकार की हिंसाएँ करते हुए भी हिंसा-हिंसा का शोर मचाकर जो जिनपूजादि नहीं करते है, वह उनकी मूर्खता है। देखिये - पूर्वधर उमास्वातीजी म. के वचन - .40

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