Book Title: Sanch Ko Aanch Nahi
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

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Page 77
________________ -G006 “सांच को आंच नहीं” (09002 सब होने पर भी स्थानकवासी सम्प्रदाय के विरुद्ध लिखने की मेरी भावना नहीं हुई। यद्यपि कई स्थानकवासी विद्वानों ने अपने मत के बाधक होने वाले सूत्रपाठों के कुछ शब्दों के अर्थ जरूर बदले थे, परन्तु सूत्रों में से बाधक पाठों को किसी ने हटाया नहीं था । लौकागच्छ की उत्पत्ति से लगभग पोने पांच सो वर्षों के बाद श्री पुष्फभिक्खू तथा इनके शिष्य-प्रशिष्यों ने उन बाधक पाठों पर सर्वप्रथम कैंची चलाई है, यह जानकर मन में अपार ग्लानि हुई । मैं जानता था कि स्थानकवासी सम्प्रदाय के साथ मेरा सद्भाव है, वैसा ही बना रहेगा, परन्तु पुप्फभिक्खू के उक्त कार्य से मेरे दिल पर जो आघात पहुँचा है, वह सदा के लिए अमिट रहेगा। ____ भगवतीसूत्र ज्ञाताधर्मकथांग, उपासकदशांग, विपाकसूत्र, औपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाभिगम, जम्बूद्धीप-प्रज्ञप्ति, व्यवहारसूत्र आदि में जहां-जहां जिनप्रतिमा-पूजन जिनचैत्यवन्दन, सिद्धायतन, मुहपत्ति बांधने के विरुद्ध जो जो सूत्रपाठ थे, उनका सफाया करके श्री भिक्खूजी ने स्थानकवासी सम्प्रदाय को निरापद बनाने के लिए एक अप्रामाणिक और कापुरुषोचित कार्य किया है, इसमें कोई शंका नहीं, परन्तु इस कार्य के सम्बन्ध में मैं यह जानना चाहता हूँ कि “सुत्तागमे" छपवाने में सहायता देने वाले गृहस्थ और सुत्तागमे पर अच्छी-अच्छी सम्मतियां प्रदान करने वाले विद्वान् मुनिवर्य मेरे इस प्रश्न का उत्तर देने का कष्ट करेंगे कि इस कार्य में वे स्वयं सहमत हैं या नहीं ? उपर्युक्त मेरा लेख छपने के बाद “अखिल भारत स्थानकवासी जैन कॉन्फ्रेन्स” के माननीय मन्त्री और इस संस्था के गुजराती साप्ताहिक मुखपत्र "जैन-प्रकाश” के सम्पादक श्रीयुत् खीमचन्दभाई मगनलाल बोहरा द्वारा "जैन” पत्र के सम्पादक पर तारीख १-५-६२ को लिखे गये पत्र में लिखा था कि - “सुत्तागमें” पुस्तक श्री पुप्फभिक्खू महाराज का खानगी प्रकाशन है, जिसके साथ "श्री वर्द्धमान स्थानकवासी जैन श्रमणसंघ” अथवा “अखिल भारतीय स्थानकवासी जैन कॉन्फ्रेन्स” का कोई सम्बन्ध नहीं है, सो जानिएगा । “इस पुस्तक के प्रकाशन के सम्बन्ध में श्रमणसंघ के अधिकारी मुनिराजों 73

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