Book Title: Sanch Ko Aanch Nahi
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

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Page 72
________________ 60 “सांच को आंच नहीं” (0902 - "णमोत्थूणं पाठ के प्रक्षेप" की समीक्षा इस प्रकरण में, लेखकश्री 'जैन साहित्य मां विकार थवाथी थयेली हानि' नामक पुस्तक के लेखक को मूर्तिपूजक समाज के प्रतिष्ठित विद्धान कहते है, वह उनकी अनभिज्ञता है, क्योंकि उक्त लेखक तो मूर्तिपूजक समाज से बहिष्कृत किये हुए थे, उन्होंने अनेक शास्त्रविरुद्ध बातें लिखी है । पं. कल्याणविजयजी जैसे विद्वानों ने जिसकी समालोचना भी की है । ऐसी व्यक्तियों को आगे करके 'मूर्तिपूजा आगमिक नहीं' 'णमोत्थुणं प्रक्षिप्त है' वगैरह बाते करना, कमजोर नींव पर १०० माल की इमारत खडी करने की चेष्टा है। __द्रौपदी प्रतिमापूजन संबंधी वर्णन में टीकाकार णमोत्थुणं पाठ को महत्त्व नहीं देते, उनके सामने दोनों प्रकार की प्रतियाँ उपलब्ध थी, वगैरह पीटीपीटायी बातों को लेखक दोहराते है । ज्ञातासूत्र में संक्षिप्त और बृहद् दोनों वाचनाओं में णमोत्थुणं का पाठ है ही। टीकाकार के सामने णमोत्थुणं पाठ वाली ही प्रतियां थी।' इन सब बातों की अनेक प्रमाणों से 'जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा' पुस्तक में पृ. १२४ से पृ. १३६ में सिद्धि की है। उसमें ८-१० अतिप्राचीन जैसलमेर-खंभात आदि के हस्तप्रतियों के आधार से णमोत्थुणं पाठ की सिद्धि की है । वर्तमान में उपलब्ध सभी प्रतियों में नमुत्थुणं पाठ है । एक भी प्रति नमुत्थुणं पाठ बिना की नहीं मिल रही है, तो प्रक्षेप की कुकल्पना कितनी उचित हैं ? टीकाकार पूर्वाचार्य खूब ही भवभीरु थे। उनके सामने उनसे भी प्राचीन टीकाएँ होगी, ऐसा अमुक टीकाओं के उल्लेख से ज्ञात होता है । 'पूर्वटीकाकृतस्तु आहु !' वगैरह उल्लेख आते है । अत: सूत्रों में जैसा पाठ है, उसी की टीका परंपरा से टीकाकार करते आये है । इस गुंजार के लेखक ने 'जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा' पुस्तक तटस्थापूर्वक पढ़ी होती तो, अनेक कुकल्पनाओं की बकवास नहीं करते । इनकी गुंजार में आती अनेक बातों के निष्पक्षता से सत्य समाधान उसमें दिये गये हैं। 68

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