Book Title: Sanch Ko Aanch Nahi Author(s): Bhushan Shah Publisher: Chandroday ParivarPage 39
________________ -G902 सांच को आंच नहीं” (0902 को शास्त्रार्थ के मध्यस्थ नियत किया गया । तिस पीछे कई दिन तक हमारे सामने आपका और उदचंदजी का शास्त्रार्थ होता रहा । शास्त्रार्थ के समय पर जो परिणाम आपने दिखलाये सो शास्त्रविहित थे । आप की उक्ति और युक्तियें भी निःशंकनीय और प्रामाणिक थी । प्रायः करके श्लाघनीय हैं । उक्त शास्त्रार्थ के समय पर और इस डेढ वर्ष के अंतर में भी जो इस विषय को विचारा है उससे यह बात सिद्ध नहीं हुई कि जैन मत के साधुओं को वार्तालाप के सिवाय अहोरात्र अखंड मुख बंधन और सर्वकाल मुख पोतिका के मुख पर रखने की विधि है । केवल भ्रांति है । केवल वार्तालाप के समय ही मुख वस्त्र के मुख पर रखने की आवश्यकता है हमारे बुद्धि बल की दृष्टि द्वारा यह बात प्रकाशित होती है कि आपका पक्ष ढूंढियों से बलवान है । यद्यपि आपका और ढूंढियों का मत एक है और शास्त्र भी एक हैं इसमें भी सन्देह नहीं, साधु उदयचंदजी महात्मा और शान्तिमान है परंतु आपने जैन मत के शास्त्रों में अतीव परिश्रम किया है और आप उनके परम रहस्य और गूढार्थ को प्राप्त हुए हैं । सत्य वोही होता है जो शास्त्रानुसार हो और जिसमें उसके कायदों से स्वमत और परमतानुयायिओं की शंका न हो । शास्त्र के विरुद्ध अंधपरंपरा का स्वीकार करना केवल हठ धर्म है । पूर्व विचारानुसार जब आप का शास्त्र और धर्म एक है उसके कर्ता आचार्य भी एक हैं फिर आश्चर्य की बात है कि कहा जाता है कि हमारे आचार्यों का यह मत नहीं है और ना वो इन ग्रन्थों के कर्ता है । आप देखते हैं कि हमारे भगवान् कलकी अवतार की बाबत जहां आप देखोगे एक ही वृत्त पावेगा, ऐसे ही आप के भी जरूरी है। आप के प्रतिवादीके हठके कारण और उनके कथानानुसार हमें शिवपुराण के अवलोकन की इच्छा हुई । बस इस विषय में उसके देखने की कोई आवश्यकता नहीं थी। ईश्वरेच्छा से उसके लेख से भी यही बात प्रगट हुई कि वस्त्र वाले हाथ को सदा मुख पर फैकता है इस से भी प्रतीत होता है कि सर्व काल मुख वस्त्र के मुख पर बांधे रखने की आवश्यकता नहीं है किन्तु वार्तालाप के समय पर वस्त्र का मुख पर होना जरुरी है । आप के शास्त्रार्थ - 35 -Page Navigation
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