Book Title: Sanch Ko Aanch Nahi Author(s): Bhushan Shah Publisher: Chandroday Parivar View full book textPage 9
________________ 4-6000 “सांच को आंच नहीं” (0902 मूर्तिपूजा को निकाल दिया। ___अरे ! मूर्तिपूजा ! तूने क्या ऐसा अपराध किया था उन लोगों का, जिससे तेरे नाम से वे लोग कांप उठते है ? ... हां ! विक्रम की सातवीं शताब्दी तक किसी अनार्यने भी तेरे खिलाफ . एक लफ्ज भी नहीं निकाला था । १३००-१४०० वर्ष पूर्व सबसे पहिले अरब - देश में मोहम्मद पैगम्बर ने तेरा बहिष्कार कर दिया, हाँ उसके पास समसेरों की बड़ी ताकत थी। . वि. सं. १५४४ के निकटवर्ती उपाध्याय श्री कमलसंयमजी लिखते है कि उस पैयगम्बर का अनुयायी फिरोजखान बादशाह दिल्ली के तख्त पर आरूढ़ होकर मन्दिर मूर्तियों को तोड़ने लगा। इधर उसी काल में लोकाशाह नामक एक जैन गृहस्थ अपमानित हो, सैयद से जा मिला और उन म्लेच्छों के कुसंग से मूर्तिपूजा का जोर शोर से विरोध करने लगा । जैन शासन में मूर्तिपूजा के खिलाफ विद्रोह करने वाले यह प्रथम ही था । मुसलमानों की ओर से उसको मूर्तिपूजा के खिलाफ प्रचार करने में बहुत सहायता मिली । एक सम्प्रदाय बन गया लोकागच्छ के नाम से, किन्तु उनके अनुयायियों ने सत्य समझकर फिर से मूर्ति को अपना लिया और लोकागच्छ में पुनः मूर्तिपूजा पूर्ववत् प्रारम्भ हो गयी । काल के प्रभाव से धर्मसिंह और लवजी ऋषि ने उस सम्प्रदाय से अलग होकर फिर से लोकाशाह की भक्ति के नाम पर मूर्तिपूजा के खिलाफ बगावत की । उनका भी सम्प्रदाय चल पड़ा, लोग उनको ढूंढकमत के नाम से पहिचानने लगे जो नहीं जंचा तो आखिर स्थानकवासी या साधुमार्गी ऐसा सुनहरा नाम बना लिया। मूर्तिपूजा के खिलाफ अनेक प्रश्न उपस्थित किये गये । मूर्ति-पूजक सम्प्रदाय की ओर से उन सभी प्रश्नों का अकाट्य तर्को से और उनके मान्य शास्त्र पाठों से समाधान किया गया, मूर्तिपूजा में चार चाँद लग गये । मेघजी ऋषि, आत्मारामजी महाराज इत्यादि अनेक भवभीरु पापभीरु महापुरुषों ने 5Page Navigation
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