Book Title: Sanch Ko Aanch Nahi
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

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Page 16
________________ "सांच को आंच नहीं" कि कल्पसूत्र दशाश्रुतस्कन्ध का आठवाँ अध्ययन ही है । वृत्ति, चूर्णि, पृथ्वीचंद टिप्पण और अन्य कल्पसूत्र की टीकाओं से यह स्पष्ट प्रमाणिक है ।” इस प्रकार जब एतिहासिक हैं संशोधन एवं लेखक के मान्य आचार्य कल्पसूत्र को प्रमाणिक कर रहे तब उनकी बात भी नहीं मानने वाले लेखकश्री पूर्वाचार्यो के सपूत कैसे बन सकेंगे ? पाठक गण निर्णय करें । श्री कल्पसूत्र में यह उल्लेख है कि भगवान महावीर के निर्वाण के समय में उनकी राशि पर भस्मग्रह का आक्रमण हुआ, जिससे भगवान महावीर के बाद २००० वर्षों तक 'श्रमण संघ' की उदय उदय पूजा न होगी । वे २००० वर्ष वि. सं. १५३० में पूरे होते हैं । उसके बाद सं. १५३१ में लौंकाशाह ने क्रियोद्धार किया, यह हकीकत 'श्री जैन धर्मनो प्राचीन संक्षिप्त इतिहास अने प्रभुवीर पट्टावली' पुस्तक से पढकर उसे अज्ञानता से सत्य मानकर लेखक श्री उछल उछलकर खुद को सपूत बताते है । उपरोक्त पुस्तक की अप्रमाणिकता और उसमें सं. १६३६ के जिन हस्तपत्रों से वह हकीकत ली है उसकी कूटता की सिद्धि आगे करेंगे । (देखिये 'लोकाशाह का जीवन' की समीक्षा) प्रामाणिक इतिहास से तो यह सिद्ध होता है कि वि. सं. १५०८ में लोकाशाह और वि. सं. १५२४ में कडुआशाह ने जैन धर्म में उत्पात मचाया । और इन दोनों के अनुयायी कहते हैं कि हमारे धर्म स्थापकों ने धर्म का उद्योत किया । अब सर्व प्रथम तो यह सोचना चाहिए कि “ भस्मग्रह के कारण उदय उदय पूजा का न होना, श्रमणसंघ के लिए लिखा हैं, जबकी लोकाशाह और कडुआशाह तो गृहस्थ थे, इनका भस्मग्रह के क्या सम्बन्ध है कि ये भस्मग्रह उतरने के पूर्व ही धर्म का उद्योत कर सकें । परन्तु वास्तव में यह उद्योत नहीं था किंतु उतरते हुए भस्मग्रह की अन्तिम क्रूरता का प्रभाव था, जो इन गृहस्थों पर वह डालता गया । जैसे दीप अंतकाल मे अपना चरम प्रकाश दिखा जाता है, वैसे ही भस्मग्रह भी जाते-जाते एक फटकार दिखा गया । I इधर तो भस्मग्रह का जाना हुआ और उधर श्री संघ की राशि पर धुमकेतु नामक महा विकराल ग्रह का आना हुआ । इन दोनों अशुभ कारणों 12

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