Book Title: Samyktvasaptati
Author(s): Sanghtilakacharya, 
Publisher: Naginbhai Ghelabhai Zaveri Mumbai

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Page 443
________________ * * ** नवरो रुटो । सिढेि आहविऊणं भणइ कहं मह हया हरिया ? ॥ ६४ ॥ साहइ चंदणसारो नाहं जाणामि किंपि 1 परमत्थं । मह कन्ना उण विन्ना सामिय! तुह उत्तरं दाही ॥ ६५ ॥ अच्छरियपूरिओ तं पडिहारं पेसिऊण सिद्विसुर्य । आणायइ नरनाहो अत्थाणे बहुजणाइन्ने ॥६६॥ फुलकरंडयतंबोलतालंयटाइकलिय आलीहिं । सहिया सुहासणत्या बहुपरियणपरिगया मुहया ॥ ६७ ॥ कप्पलया इव दाणं दिती किर्ति जए पयासंती । वणिज्जती मागहजणेहिं सा निवसहं पत्ता ॥ ६८॥ जुयलं । एसा अजवि कन्ना दुद्धमुही नरवरस्स किं दाही। उत्तरमिय नय-17 रजणो कुऊहलेणं मिलइ तत्थ ॥ ६९ ॥ साऽवि नमंसिय रायं उवविट्ठा नियपियस्स उच्छंगे । पुट्ठा रण्णा कन्ने ! यहरणे उत्तरं देसु ॥ ७० ॥ सा अवलंबिय साहसमवणीसं भणइ इयरलोओऽवि। संभरई नियवयणं विसेसओ देव! तुम्ह समो ।। ७१ ॥ सो संभंतो साहइ किंतं वयणं ? सरामि नो अहयं । तो सा सरसइसरिसा साहइ पुहवीपहु प्पुरओ ॥ ७२ ॥ विससहयसिरीवि सिरी चेयन्नं हरइ भुबमाणाणं । तं उचियं चुजं पुण जंन हु मारेइ भुवणजणं 18॥ ७३ ॥ पुत्वभवविहियकजं एगे सुमरंति निययनामुछ । एगे पुण अच्छेरं इहभवचरियपि न मुणंति ॥ ७४ ॥ तो रोसवियडउन्भडभिउडीभंगुरकरालभालयलो। साहइ राया तं चिय सुमरेसु ममं तु बीसरियं ॥ ७५ ॥ सा भइ देव ! तुज्झग्गिराइ एए हए करेमि निए । अन्नह मह घरसारं सर्व तुह संतियं चेव ॥ ७६ ॥ तो बहियं कहात्रिय वाइय मन्नाविउं नियं वयणं । मह तुरयजायतुरया मह चेव हवंति ननस्स ॥ ७७ ।। मंतिपुरोहियतलवरसामंतप-16 * *

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