Book Title: Samyktvasaptati
Author(s): Sanghtilakacharya, 
Publisher: Naginbhai Ghelabhai Zaveri Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 449
________________ तहवि पभणेमि ॥ १४८ ॥ सिरिधरणिंदपियासुं पट्टमहादेविया अहं मज्झ । तं चेव मुणसि सम्मं कंतं अणवस्यरतमणं ॥ १४९ ॥ एसा कुसला कुसला वीणावायणकलाइ मह दासी । धरणेण मग्गियाविठु सिरिभूयाणंदमित्तकए ॥ १५० ॥ नो दिन्ना जं जायइ मह नाडयमंगयं इमीइ पिणा । तो भणइ नागरामो हठेणयि एवं गहिस्सामि १५१ ॥ तं अवमाणं पणो नाउं रूसित्तु इत्थ पत्ताऽहं । काऊण रयणभवणं सुहेण चिट्ठामि एगते ॥ १५२ ॥1 तुह पुरओ विनतिं करेमिजह सो न मं इह मुह । तह कायचं तुमए नियाइ मंतस्स सत्तीए ॥ १५३ ॥ इय भपणिय जोइणि तं आयरपुष गहित्तु नियहत्थे । संपत्ता भोयणमंडमि सुरमंदिरसरिन्छे ॥ १५४ ॥ ससिलेहा तं साहइ चिरकालेणं तमह मिलियासि । ता एगमायणमि जिमेसु पियसहि ! मए सद्धिं ॥ १५५ ॥ सा पडिजियययणा उवविट्ठा दिवरसपई भुत्तुं । दिहा रण्णा विम्यविष्फारियनयणकमलेणं ॥ १५६ ॥ राया तत्तो चिंतइ | अदिट्ठपुष मए नियंतेणं । पायालनाइगाए रूवं किं किं न पजत्तं? ॥ १५७ ॥ तीए संकेएणं अह सा जोइणिवरा पयंपेइ । हद्धी मह वीसरिओ अंतेवासी पमाएणं ॥ १५८ ॥ तेण विणा अज्जयि नहु भुंजिस्सम इओ य ससिलेहा। साहइ जोइणिसामिणि !, कोतुह सीमो मह कहेसु ?॥१५९॥ असुरो वा अमरो वा गंधवो नागलोगवासी वा। तस्स कए गोरवं करेमि जह सबसत्तीए ।। १६० ॥ सा जोडणीवि तं पड़ जंपह नदु सुरवराइजाईओ। किं पुण दुल्ललियनिवो । एसो माणुस्सकुलतिलओ ॥१६१॥ अवि कूणिऊण नासं सा जंपइ तं तुमंसि भोलषिया । आइमचीए केणवि जोइणि !

Loading...

Page Navigation
1 ... 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490