Book Title: Samyktvasaptati
Author(s): Sanghtilakacharya,
Publisher: Naginbhai Ghelabhai Zaveri Mumbai
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पसाया पावउ सुरसिज्ज संगसुहं ॥ १७६ ॥ ताणं एगा जंपद उवरितले नत्थि तूलिया काऽवि । जइ महइ एस सुक्खं ता तूलिं नेउ सयमेव ॥ १७७ ॥ तो हरिमनिरंगो सहसा उद्वित्तु सयगुणुच्छाहो । राया सिरंमि तूलिं करितु भवणोवरिं चडिओ ॥ १७८ ॥ उयरिय पुणोचि तत्तो पलंकं मत्थर्यमि धरिऊणं । नेउं भवणस्सुवरिं राया पत्थर दासु ॥ १७९ ॥ जोइणिवयणेण तओ उप्पाडिय तूलियं सपलंकं । सुरसुंदरीह उवरिमतलंमि नेऊण पत्थरह ॥ १८० ॥ सावि ससि ठाउं रण्णो रंजेइ रहरसगुणेहिं । तह चित्तं जह अन्ना मन्नइ सो रासहीउव ॥ १८१ ॥ जामिणिजामे तह पच्छिमंमि नयणेसु बंधिरं पठ्ठे । सो जोइणीइ नीओ नियए भवणंमि नरनाहो ॥ १८२ ॥ एवं पइदियहं चिय आगच्छंते निवंमि ससिलेहा । तीए भणिया वच्छे । दासो जाओ पईवि तुह ॥ १८३ ।। तो पूरियप्पन्ना ससिलेहा काउ फारसिंगारं । अंतेउरमज्झगयं रायं विन्नवह कयहासा ॥ १८४ ॥ सामिय ! दूसणकलिया जं परिचत्ता अहं तु जुत्तमिणं । अवराहिं किमवरद्धं अंतेउरियाहिं जं चयसि ॥ १८५ ॥ अहवा नायं सुरसुंदरी बहुविहविलासरसियस्स । अम्हारिसीण नामं गहियं तुह न य रई कुणइ ॥ १८६ ॥ तत्रयणेण चमकियचित्तो राया निरूविऊण तयं । उवलक्खिऊण य पुणो भणड़ अ तं किं किमेयंति ? ॥ १८७ ॥ तत्तो नमिय नरिंदो तीए मणिओ मए अविणओ जो । जोइणिवयणेण कओ सो खमियो त नाह ! ॥ १८८ ॥ हरिसविसायाच्छेरयपरिपूरियमासो नराहिवई । तं बुद्धिमई देवीपयमि ठावेइ ससिलेहं ॥ १८९ ॥ उक्तंच - "ता गयो ता रोसो ताब चिय पुत्र
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