Book Title: Samyktvasaptati
Author(s): Sanghtilakacharya,
Publisher: Naginbhai Ghelabhai Zaveri Mumbai
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निक्खित्तो पिक्खिउंपि न निययपरियणं लहइ, तहा एएण दिटुंतेण तुम्ह पिया कम्मपरवसा नरयाउ न पावडर नीसरिउं, भूवइणा भणियं-जइ एवं ता मह माया तुम्ह धम्मरत्ता जीवदयानिरया अवस्सं सग्गं गया हविस्सइ, सा य आगंतूण पावनिरयं मं किं न बोहेइ , तओ भगवया बागरियं-श्री देवाणुप्पिया ! मागं गया जीवा सहावसोहग्गसुंदरअमरसुंदरीभोगदुललिया बहुपयाररिद्विभरवक्खित्तचित्ता असंपन्नपओयणा अणहीणमणुयकज्जा चउसय-18 पंचसयजोयणुल्लसिरितिरियलोयदुरभिग्गंधसंतहा तित्थेसरपंचकल्लाणगे महरिसितवाणुभावं जम्मतरनेह वा मुत्तूण |पाएण न समागच्छंति मणुयलोयं । तओ रण्णा बुत्तं-भयवं ! मए जीवस्स पिक्खणकए एगो चोरो दोखंडीकओ,
तत्थ न दिट्ठो कोऽवि नीहरंतो महन्भूए चइवि अन्नो जीवो, मुणिवरेणावि भणियं-राय ! केणवि अरणियकट्ठ बहुसो, |संडीकयं, तस्स मज्झे न पलोइओ सबहावि अग्गी, अवरेण महणदारुणा महणजुत्तीए उडिओ दिट्ठो हववाहो ।
जइ मुत्तिधरा अवि पयत्था विजमाणावि चम्मचक्खूहि न पिक्खिजंति ता सरीराइविरहियस्स अम्मुत्तस्स जीयस्साणवलोयणे का विपडिवत्ती ?, पुणो रण्णा साहियं-भय ! एगो चोरो जीवंतो लोहमंजूसाए पक्खित्तो, सा य जउपमुहदश्वेहि समंतओ नीरंधीकया, कियंतेऽपि समए समइकते चोरो तम्मज्झडिओ चेव वियन्नो, जइ कोवि' सरी-13 रवइरित्तो जीवो हुज्जा ता नृणं पलोइजइ, तन्निस्सरणमग्यो मंजूसाए न दिट्ठो, तम्हा नस्थि जीवो, तो भगवया द भणियं-एगंमि पुरे कोऽवि संखवायगो हुत्या, तस्सेवंविहलद्वी-दूरेवि संखं पूरंतो कण्णसन्निहाणे चेव लक्खियइ,
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