Book Title: Samyktvasaptati
Author(s): Sanghtilakacharya,
Publisher: Naginbhai Ghelabhai Zaveri Mumbai
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पुदभवन्भासेण य जिणधम्मरया सभावओ जाया । उप्पन्नजाइसरणा कीरभवं जाणइ असेसं ॥ ५० ॥ सम्मदंसणरम्मं जिnarari करे बाला । परइ गुई सत्यं अजियजणनिच सेवाए ॥ ५१ ॥ जिणमयवियारसुंदरकम्मप्पयडीसुद्देसु गंथेसुं । कुसलत्तं संपाचिय विउसाणं अग्गिमा जाया ॥ ५२ ॥ घरकम्मधम्मकज्जे जाया सवत्थ पुच्छणिज्जा सा । पावेइ गउरखं पुण गुणनिवहो इत्थ किं चुज्जं ? ॥ ५३ ॥ अन्नदिने नियजणयं विन्नविडं तीइ तेजदेखाउ । आणाविया तुरंगा रविरहतुरयाण गबहरा ॥ ५४ ॥ सेराहा खुंगाहा हंसुलया उकनाह बुलाहा । नीलुकालुयपमुहा बहुवेगा लक्खणोवेया ॥ ५५ ॥ जुयलं ॥ ते पुरपरिसरसरियातीरे बंधाविया तरुच्छाए । दिट्ठा कस्स न चित्तं हरति सुररायतुरयव ? || ५६ ॥ अन्नदिवसंमि राया अञ्चन्भुयको उगाउलियचित्तो । पिक्ख ते वरतुरए विगाहिवविजययेगधरे ॥ ५७ ॥ मुलेण अतुलेणषि मग्गह आसे सयं महाराओ । सिद्धीवि नेव वियर धूयाए वारिओ संतो ॥ ५८ ॥ अन्नदिणे तणयाए वयगेणं देद्द नियत्ररकिसोरे । गच्भकए तुरगीणं सिट्ठी अन्मत्थिओ रण्णा ॥ ५९ ॥ पच्छरं किसोरा रण्णा संचारिया किसोरीणं । जा पंच बच्छराई ततो जाया हया बहवे ॥ ६० ॥ अह चंदलेहकन्ना जंप तायं किसोरएहि मह । रण्णो जे संजाया तुरया ते लेसु सवेऽवि ॥ ६१ ॥ रुट्ठो राया जश्या तुमं धरावेइ भइ वा किंपि । तया भणियवो सो जं सुणइ सुया मह रहस्सं ॥ ६२ ॥ धूयावयणेण तओ नियतुरयसमुब्भवा य जे तुरया । नीरं पाउमुवेया नईह ते सिट्टिणा हरिया ।। ६३ ।। सिट्ठिसुदडेहिं तासियपंडववयणेहि

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