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अनानी कर्ता है (49,61)। यह कर्तृत्व प्रात्मा की परतन्त्रता को चटानेवाला है। कि नानी आत्मा की स्वतन्त्रता का पारखी होता है, इसलिए वह इन मवेगो मे एकीकरण नहीं करता है और इनका नायक बना रहता है। यहा ममयमार का कहना है कि जानी कपायो (सवेगो) को विल्कुल नहीं करता है। वह उनका कर्ता नहीं है (41, 139) । पुद्गल- कर्म के द्वारा उत्पन्न किए हुए किमी भो मवेग (कपाय) का आत्मा कर्ता नहीं है (41)। ज्ञानी हर समय पर के प्राश्रयरहित होता है। वह स्वशासित रहता है तथा नायक मत्तामाय बना रहता है (ITI)। ज्ञानी की यह विशेषता है कि वह दुमात्मक कर्मों का उदय होने पर भी अपने नानीपन को नहीं छोडता है.जमे पाग मे तपाया हुआ सोना अपने कनक-स्वभाव की नही छोटता है (93)। जैसे विप खा लेने पर भी कोई वैद्य विशनाशक प्रक्रिया अपनाने के कारण मरण को प्राप्त नही होता है, वैसे ही ज्ञानी पुद्गल-कर्म के उदय को अनामन्तिपूर्वक भोगने के कारण कर्मों से नही बांधा जाता है और मानमिक तनाव का शिकार नहीं होता है (99) ।
अनानी प्रात्मा अपने मवेगो के कारण पुद्गल-कर्मो से युक्त होता है (39) । इस तरह से वह सवेगो का अज्ञानी कर्ता होता है, वैसे ही वह पुद्गल कर्मों का भी अज्ञानी कर्ता होता है
और उन्ही का भोक्ता भी होता है (43)। समयसार का कथन है कि व्यवहारनय के अनुसार आत्मा अनेक प्रकार के पुद्गल कर्मों को करता है तथा वह अनेक प्रकार के पुद्गल कर्म के फलो को ही भोगता है (43)। चकि व्यवहारनय चेतना की परतन्त्रता से निर्मित दृष्टि है, इसलिए अजानो कर्ता व्यवहारनय के आश्रय से चलता है (53) । निश्चयनय के अनुसार आत्मा पुद्गल कर्मों को
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