Book Title: Samaysara Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ यह पुण्य (शुभ-क्रिया) समाजको तो व्यवस्थित करता है, किन्तु इसकी उपस्थिति मे व्यक्ति मानसिक तनाव से ग्रसित रहता है ।। अत जो क्रिया मानसिक तनाव में प्रवेश कराती है वह उपयुक्त कैसे कही जा सकती है ? इस तरह से जैसे पाप (अशुभ क्रिया) कर्म-बध (मानमिक तनाव), वैसे ही पुण्य (शुभ क्रिया) भी कर्म-बध (मानसिक तनाव) का कारण है। ये दोनो ही व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास मे वाधक है। समयसार का शिक्षण है कि जैसे काले लोहे से बनी हुई वेडी व्यक्ति को बांधती है और सोने की बेडी भी व्यक्ति को बाधती है, उसी प्रकार व्यक्ति द्वारा की हुई शुभ-अशुभ (मानसिक तनावात्मक)क्रिया भी उसको परतन्त्र बनाती है (72)। अत समयसार का शिक्षण है कि व्यक्ति मानसिक तनाव उत्पन्न करनेवाले दोनो कुशीलो (शुभ-अशुभ क्रियाओ) के साथ बिल्कुल राग/आसक्ति न करे, उनके साथ सम्पर्क भी न रखे, क्योकि आत्मा का स्वतन्त्र स्वभाव कुशीलो के साथ सम्पर्क और उनके साथ राग से व्यर्थ हो जाता है (73)। जैसे कोई व्यक्ति निन्दित आचरणवाले मनुष्य को जानकर उसके साथ ससर्ग को और राग करने को छोड़ देता है, वैसे ही पाप-पुण्य की, शुभ-अशुभ क्रियाओ की प्राध्यात्मिक रूप से निन्दित प्रकृति को जानकर स्वभाव मे लीन व्यक्ति उनके साथ सवध छोड देते हैं और उनके साथ राग/ आसक्ति को तज देते है (74, 75)। किन्तु जो व्यक्ति शुद्ध प्रात्मा (स्वतन्त्रता) से अपरिचित हैं, वे ही पुण्य (शुभ क्रिया) मे आसक्त रहते हैं (80) । अष्टपाहड-चयनिका की प्रस्तावना मे लेखक द्वारा यह स्पष्ट किया जा चुका है कि शुभ भावो से प्रेरित शुभक्रियाओ से समाज आगे बढता है, किन्तु व्यक्ति मानसिक तनाव से दुखी रहता है। समयसार परतन्त्रता/मानसिक तनाव को - 1 विस्तार के लिए देखें, मष्टपाहुर-चयनिका की प्रस्तावना । चयनिका [ XX111 xxii

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145