Book Title: Samaysara Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 122
________________ [(प-गरण)-चिट्ठ) 5/1] कस्स (क) 6/1 स वि (प्र) =भी ण (अ)=नही य (अ)= बिल्कुल पायरो (पायरण) 1/1 वि त्ति (अ)=निश्चय ही सो (त) 1/1 सवि होदि (हो) व 3/1 प्रक 101 उदयविवागो [(उदय)-(विवाग) 1/1] विविहो (विविह) 1/1वि कम्माण वि(कम्म)6/2 वण्णिदो(वण्ण)भूकृ1/1 जिरणवरेहि (जिणवर) 312 रण (अ)= नही हु (अ)=निश्चय ही ते (त) 1/2 सवि मज्झ (अम्ह ) 6/1 स सहावा ( सहाव ) 112 जाएगभावो [ (जाणग) वि-(भाव) 1/1] दु (अ) =तो अहमेक्को [ (ग्रह) + (एक्को ] अह (अम्ह) 1/1 स एक्को (एक्क) 1/1 सवि 102 एवं (अ)=इस प्रकार सम्मादिट्ठी (सम्मादिट्ठि) 1/1 वि अप्पारण (अप्पाण) 2/1 मुणदि (मुण) व 3/1 सक जाणगसहाव [ (जाणग)- (सहाव) 2/1] उदय (उस्य) 2|| कम्मविवाग [ (कम्म)-(विवाग) 2/1 ] च (अ)--और मुयदि (मुय) व 3/1 सक तच्चं (तच्च) 2/1 वियाणतो (वियाण) व 1/1 103 परमाणु मेत्तय [ (परमाणु) - (मेत्त) 1/1 स्वार्थिक 'य' प्रत्यय ] पि (प्र) =भी हु (अ) =निस्सदेह रागादीण [ (राग)-(प्रादि) 6/2 ] तु (म)=पाद-पूर्ति विज्जदे (विज्ज) व 3/1 सक जस्स (ज) 6/1 सण (अ)=नही वि (अ) =तो भी सो (त) 1/1 सवि जागदि (जाण) व 3/1 सक अप्पारणयं (अप्पाण) 2/1 स्वार्थिक 'य' प्रत्यय तु (अ)=पाद-पूर्ति सव्वागमषरो [ (सन्व) + (मागम) + (धरो)] [ (मन्व) वि-(आगम) (घर) 1/1 वि] वि (प्र)=भी 1 प्राकरणिक प्राकरण (वि) (Momer Williams. P 701 Col III ) ! 86 ] समयसार

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