Book Title: Samaysara Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 120
________________ 94 95 पि ( 2 ) =भी करणवसहाव ( करणय ) - (सहाव ) 2 / 1] ग ( ) = नही त ( प्र ) : == वाक्य की शोभा परिच्चयदि (परिचय) व 3 / 1 सक तह ( प्र ) = वैसे ही कम्मोदयतविदो [ (कम्म) + (उदय) + (नविदो ) ] [ ( कम्म ) - (उदय) - (तव ) भूकृ 1 / 1] जहदि (जह ) व 3 / 1 सक गासी (गारिण) 1/1 विदु (प्र) = भी खालित (ufua) 2/1 96 एव ( प्र ) - इस प्रकार जारदि (जाण) व 3 / 1 सक गाणी (रागि) 1 / 1 वि श्रवणाखी (प्रणारिण) 1/1 वि मुरदि ( मुरण) व 3/1 सक रागमेवाद [ (राग) + (एव) + (प्राद) ] राग (राग) 2 / 1 एव (प्र) = ही प्राद ( द ) 2 / 1 अण्णारणत मोच्छरण [ ( अण्णारण) + (तम) + (उच्च) ] [ ( अण्णारण ) - ( तम) - (उद्धरण) भूकृ 21 अनि ] [ ( प्राद) - ( महाव ) 2 / 1 ] श्रयाणतो दसहाव (अयारण) वकृ 1/1 सुद्ध (सुद्ध) 2/1 वि तु (प्र) = पादपूर्ति विद्याणतो ( वियारण) वकृ 1/1 विसुद्धमेवप्पय [ ( विसुद्ध ) + (एव) + ( श्रपय)] विसुद्ध ( विसुद्ध ) 2 / 1 वि एव (प्र) = ही अप्पयं ( अप्प ) 2 / 1 स्वार्थिक 'य' प्रत्यय लहदि (लह) व 3 / 1 सक जीवो (जीव) 1/1 जाणतो (जाण) व 1 / 1 दु (प्र) = तथा असुद्ध ( असुद्ध ) 2 / 1 वि श्रसुद्धमेवप्पय [ (असुद्ध ) + (एव) + ( श्रप्पय ) ] असुद्ध (प्रसुद्ध) 2 / 1 वि एव ( अ ) = ही अप्पय ( अप्प ) 2 / 1 स्वार्थिक 'य' प्रत्यय अप्पारणमप्परगा [ ( अप्पारण) + (अप्परगा ) ] प्रमाण (अप्पा) 2/1 प्रणा (ग्रप्प ) 3 / 1 रु घिण ( रूघ) संकृ दोपुण्णपाव जोगेसु [ (दो) – (पुष्ण) – (पाव) – (जोग) 7 / 2 [ ( दमरण) - (सारण) 7/1] ठिदो ( ठिद) भूकृ 1 / 1 अनि इच्छा विरदो - - ] दंसणगारसम्हि 84 ] समयसार

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