Book Title: Samaysara Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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115. तह (अ)=उमी प्रकार पाणिस्स (गाणि) 611 दु (अ)=
पादपूर्ति विविहे (विविह) 2/2वि सचित्ताचितमिस्सिए[(सरित)+ (प्रचित्त)+ (मिस्मिए)] [ (सच्चित्त)-(प्रचित्त)-(मिस्स) भूक 212] दन्वे (दन्व) 2/2 भुजतस्स (मुज) वक 6/11 वि (म) =भी गाण (सारण) 1/1 रण (म)=नहीं सक्कमपणाणदं [(सक्क) + (अण्णाणद)] सक्कं (मक्क) विधिक 1/1 पनि, अण्णारणदा (अण्णाण) 2/1 वि स्वार्थिक 'द' प्रत्यय गेदु (गो) हेक अनि
116 जइया (प्र)= नब स (त) 1/1 सवि एव (प्र) ही संखो (मन)
1/1 सेदसहाव [ (सेद) वि-(महाव) 2/1] सय (म)=स्वय पनहिरण (पजह) सकृ गच्छेज्ज (गच्छ) व 3/1 सक किण्हभावं [(किण्ह)-(भाव) 2/1] तइया (प्र)=तव सुक्कत्तण (सुक्कत्तण)
211 पनहे (पजह) व 3/1 मक 117 तह (अ)=उमी प्रकार गाणी (णाण) 1/1 वि वि (अ)=भी
हु (अ)=निश्चय ही जइया (अ) जब गाणसहावं [(णाण)(सहाव) 2/1] सय (अ) स्वयं पजहिदूण (पजह) म अण्णाणेण (अण्णाण) 3/1 वि परिणदो (परिणद) भूकृ 1/1 अनि तइया (प्र)=तव अण्णाद (अण्णाण) 2/1 वि स्वार्थिक
'द' प्रत्यय गच्छे (गच्छ) व 3/1 मक 118 सम्मादिट्ठी (सम्मादिट्टि) 1/2 जीवा (जीव) 1/2 णिस्सका
(णिस्सक) 1/2 वि होति (हो) व 3/2 अक णिन्भया (णिभय) 1/2 वि तेण (अ)= इसलिए सत्तभयविप्पमुफ्का [(सत्त) वि(भय)- (विप्पमुक्क) 1/2 वि] जम्हा (अ)-चूकि तन्हा
(अ)--इसलिए दु (अ)=निश्चय ही 1 गमन अर्थ में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग हुमा है।
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समयसार

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