Book Title: Samaysara Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 128
________________ 124 जो (ज) 1/1 सवि कुणदि ( कुरण) व 31 / सक वच्छलत्त ( वच्छलत्त ) 2 / 1 तिन्ह (ति) 6 / 2 साहूण (साहू) 6/2 मोक्खमग्गमि [ ( मोक्ख ) - ( मग्ग) 7 / 1 ] सो (त) 1 / 1 सवि वच्छल भावजुदो [ वच्छल ) - (भाव) - (जुद ) 1 / 1 वि] सम्मादिट्ठी ( सम्मादिट्ठी) 1 / 1 वि मुणेदव्वो (मुख) विधि 1 / 1 6 125 विज्जारहरूदो [ (विज्जा ) + (रह) + ( प्रारूडो ) ] [ (विज्जा) - (रह ) 3 2 / 1] श्रारूढो ( श्रारूढ ) 4 भूकृ 1 / 1 अनि मरणोरहपहेसु [मरणोरह) - ( पह) 7 /2] भमइ (भम) व 3 / 1 सक जो (ज) 1/1 सवि चेदा (वेद) 1/1 सो (त) 1 / 1 सवि जिरणरणारण पहावी [ ( जिरण) - ( गाण) - ( पहावि) 1 / 1 वि] सम्मादिट्ठी ( सम्मादिट्ठि) 1 / 1 वि मुणेदव्वो (मृण) विधि 1/1 1 2 3 सक जो (ज) 1 / 1 सवि चेदा (चिद) 1 / 1 सो (त) 1 / 1 सवि ठिदिकरणाजुत्तो [ ( ठिदिकरणा ) 1 - ( जुत्त) 1 / 1 वि ] सम्मादिट्ठी ( सम्मादिट्ठि) 1 / 1 वि मुणेदव्वो (मुण) विधिकृ 1 / 1 4 5 6 समासगत शब्दो मे स्वर हस्व के स्थान पर दोघं मौर दोघ के स्थान पर हृस्व हो जाया करते हैं । यहाँ ठिदिकरण' का ठिदिकरणा' हुआ है । ( हेम - प्राकृत - व्याकरण 1-4 ) । कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर पष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हेम-प्राकृत-व्याकरण 3-134 ) तीम्ह तिह (दीर्घ स्वर के भागे सयुक्त स्वर हो तो, उस दीर्घ स्वर का हस्व स्वर हो जाया करता है (हेम-प्राकृतव्याकरण 1-84 ) । कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है ( हेम - प्राकृत-व्याकरण 3 - 137 ) । 'प्रारूढ' प्राय कर्तृवाच्य में प्रयुक्त होता है । कभी कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हेम-प्राकृत-व्याकरण 3-135 ) । 'मरणोरह' = सकल्परूपी नायक, यहां 'रह' का भयं 'नायक' है । 92 ] समयसार

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