Book Title: Samaysara Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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156 ए (अ)-नही वि (म)= भी एस (एन) 1/1 सवि मोक्खमग्गो
[ (मोक्ख)-(मग्ग)111] पासडिया (पास स्य) मूल शब्द गिमियाणि [(गिहि)-(मय) 1/2 वि] लिंगारिण (लिंग) 1/2 दलगणाणचरित्ताशि [ (दमण)-(णाण)-(चरित) 212 ] मोक्खमग्ग [ (मोक्ख)-(मरग) 211] जिणा (जिरण) 112 विति (बू) व 312 मक
157 तम्हा (अ)-इमलिए जहित्तः (जह) सकृ लिगे (लिंग) 212
सागारणगारियेहि [(सागार) + (मणगारियेहि)] [(सागार)(प्रणगारि) स्वार्थिक 'य' प्रत्यय 312] वा (अ)-पादपूर्ति गहिदे (गह) भूक 212 दसणणारणचरिते [(दंसण)- (णाण)(चरित्त) 7/1] अप्पारण (अप्पाण) 2/1 ] जुब्ज (जुञ्ज) विधि 2/1 सफ मोक्खपहे [(मोक्ख-(पह) 7/1]
158 मोश्यपहे [(मोक्ख)-(पह) 7/1] अप्पारण (अप्पाण) 2/1
वेहि (ठब) विधि 2/1 सक चेदयहि (चेदय) विधि 2/1 सक झाहि (भा) विधि 2|| सक त (त) 2/1 सवि चेव (अ)=ही तत्थेव (अ)-वहाँ ही विहर (विहर) विधि 2/1 सक रिगच्च (अ)== सदा मा (म)=मत विहरसु (विहर) विधि 2/1 अक अण्णदग्वेसु [ (अण्ण)- (दम्ब) 7/2]
1 पद्य में किसी भी कारक के लिए मूल सशा शब्द काम में लाया जा सकता है
(पिशल प्राकृत भाषामो का व्याकरण, पृष्ठ 517)। 2 जह-अहित (यहाँ उपयुक्त जहित्तु' में अनुस्वार का लोप हुमा है।)
(हेम-प्राकृत-व्याकरण, 2-146 वृत्ति)
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