Book Title: Samaysara Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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= पादपूरक ण (
कख
(कन ) 2/1
119 जो (ज) 1/1 मवि (कर) व 3 / 1 गक कम्म फले (फल) 2/2] तह य ( प्र ) = तथा सव्वधम्मेसु र [ ( सच्च) --- (धम्म) 7/2] सो (त) 1 / 1 सवि णिक्कखो ( रिक्कस) 1 / 1वि चेदा (वेद) 1/1 सम्मादिट्ठी ( मम्मादिट्ठि) 1/1 मुदव्वो (मुण) विधि 1/1
दु ( प्र ) =
1
)
120 दुगञ्छ (दुगञ्छ ) 2 / 1 सव्वेसिमेव [ ( मव्वेसि) + (एव) ] सव्वेनिय (मन्त्र) 6 / 2 वि एव (प्र) = भी. धम्माण' (धम्म) 6 / 2 सो (त) 1 / 1सवि खलु प्र ) = निश्चय हो णिव्विदिगियो (छ) 1 / 1 सम्मादिट्ठी ( सम्मादिट्ठि) 1/1 ( वाकी के लिए देखे 119 ) 121 हवदि (हव) व 3 / 1 ग्रक सम्मूढो ( अमम्मूढ) 1 / 1 वि सहिट्टि (म- हिट्ठि) मूलशब्द 1 / 1 वि सव्वभावेसु [ ( सन्त्र ) - (भाव) 712] श्रमूढदिट्टी (प्रमूढदिट्ठि) 1/1 ( वाकी के लिए देखे 119 )
2
= नही करेटि
122 सिद्धभत्तिजुत्तो [ ( मिद्ध) - (भत्ति ) - ( जुत्त) भूक 1/1 प्रनि ] उग्रहण गो ( उवगूहाग ) 1 / 1 विदु ( अ ) = श्रौर सव्वधम्माक्ष [(सव्व) - (घम्म) 6/2] उवग्रहणगारी ( उवगृहगार) 1 / 1वि बाकी के लिए देखें 119
4
[ (कस्म ) -
123 उम्मा (उम्मग्ग) 2 / 1 गच्छत (गच्छ) वकृ 2 / 1 सग ( सग ) 2 / 1 विपि (अ) पादपूरक मग्गे (मग्ग) 7/1 ठवेदि (ठव) व 3 / 1सक
कभी कभी द्वितीया के स्थान पर सप्तमी का प्रयोग पाया जाता है । ( हेम-प्राकृत-व्याकरण, 3-135 ) ।
कभी कभी सप्तमा के स्थान पर पष्ठी का प्रयोग पाया जाता है । (हेम-प्राकृत-व्याकरण 3-134 ) 1
3
पद्य में किसी भी कारक के लिए मूल शब्द काम मे लाया जा सकता है । ( पिशल प्राकृत भाषामो का व्याकरण पृष्ठ
517 ) 1,
गमन भय की क्रियायो के साथ द्वितीया विभक्ति होती है ।
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