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व्रत और नियमो को धारण करते हुए तथा शीलो और तप का पालन करते हुए जो (व्यक्ति) परमार्थ (शुद्ध आत्मतत्व) से अपरिचित ( है ) वे परम शान्ति को प्राप्त नही करते हैं ।
जो (व्यक्ति) शुद्ध ग्रात्मा मे अपरिचित ( हैं ), वे प्रज्ञान से ससार-गमन (मानसिक तनाव। के हेतु पुण्य को चाहते है और मोक्ष (तनाव मुक्तता / स्वतन्त्रता / समता) के हेतु को न समझते हुए (जीते रहते हैं) ।
जीवादि मे श्रद्धान सम्यक्तव ( है ), उनका (ही) ज्ञान (सम्यक् ) ज्ञान (है), (तथा) रागदि का त्याग ( सम्यक् ) चारित्र ( है ) | यह ही शान्ति का पथ है ।
विद्वान (लौकिक विद्याओ मे निपुण) (व्यक्ति) निश्चय की सार्थकता को छोडकर व्यवहार मे प्रवृत्ति करते है। ( सच तो यह है कि ) परमार्थ का अभ्यास करनेवाले योगियों के ही कर्मो का क्षय होता है ।
जिस प्रकार मैल के घने सयोग से ढकी हुई वस्त्र की मफेद अवस्था अदृश्य हो जाती है, उसी प्रकार मिथ्यात्व - (मूच्छ) रूपी मैल से लोप किया गया सम्यक्तव (जागृति ) ( अदृश्य हो जाता है) । (यह) निश्चय ही समझा जाना चाहिए ।
जिस प्रकार मैल के घने सयोग से ढकी हुई वस्त्र की सफेद ग्रवस्था दृश्य हो जाती है, उसी प्रकार अज्ञानरूपी मैल से लोप किया गया ज्ञान ( अदृश्य हो जाता है) । (यह ) समझा जाना चाहिए ।
चयनिका
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