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119 जो किसी भी शुभ मनोवृत्ति से (लौकिक फल प्राप्ति की)
चाहना नहीं करता है तथा (उनसे उत्पन्न) कर्म-फलो को भी (नहीं चाहता है, वह व्यक्ति नि काम सम्यग्दृष्टि समझा जाना चाहिए।
120 जो व्यक्ति किसी भी (सेवा) कर्तव्य के प्रति घृणा नहीं
करता है, वह निश्चय ही निर्विचिकित्स सम्यग्दृष्टि समझा जाना चाहिए।
121 जो व्यक्ति सभी (शुभ) मनोवृत्तियो मे मूढतारहित (होता
है) तथा (उनमे) उचित दृष्टिवाला होता है, वह निश्चय ही अमूढप्टि सम्यग्दृष्टि समझा जाना चाहिए।
122 जो (व्यक्ति) शुद्धात्मा की श्रद्धा से युक्त (है) और (अपने
द्वारा किए गए) (दूसरो की) सभी भलाई के कार्यों को ढकनेवाला है, वह उपगृहनकारी सम्यग्दृष्टि समझा जाना चाहिए।
123. जो मनुष्य उन्मार्ग मे जाते हुए स्वय को सद्मार्ग मे स्थापित
करता है, वह स्थितिकरण से युक्त सम्यग्दृष्टि समझा
जाना चाहिए। 124 जो (मनुष्य) मोक्ष (परम शान्ति) के मार्ग में स्थित तीन*
(प्रकार के) साघुरो के प्रति वात्सल्यता को प्रकट करता है, वह वात्सल्य भाव युक्त सम्यग्दृष्टि समझा जाना चाहिए।
* भाचार्य, उपाध्याय, साधु ।
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चयनिका
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