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समाप्त करने की बात कहता है, जिसमे शुद्ध क्रियाएं (शुभ क्रियामानसिक तनाव ) की जा सके। मानसिक तनावरहित शुभक्रियाएँ (शुद्ध क्रियाएँ) व्यक्ति व समाज दोनो के लिए हितकर हैं ।
यहाँ यह समझना चाहिए कि स्वतन्त्रता की माधना मे इच्छाओ का त्याग महत्वपूर्ण है । इच्छाओ के कारण व्यक्ति वस्तु को सक्तिपूर्वक अपनाना है, शुभ-अशुभ क्रियायो को भी प्रासक्तिपूर्वक करता है । इच्छारहित व्यक्ति ग्रामक्तिरहित होता है । अत वह शुभ क्रिया तथा प्रशुभ क्रियाओ को नही चाहता है। वह उनका नायक होता है ( 103, 110 ) | यदि उसको कोई जीवनोपयोगी वस्तु किसी के द्वारा छिन्न-भिन्न करदी जाती है तो दी जाती है, अथवा ले जाई जाती है श्रथवा वह सर्वनाश को प्राप्त हो जाती है या किसी कारण से दूर चली जाती है, तो भी उसे मानसिक तनाव नहीं होता है, क्योकि उसकी वस्तु सक्ति नही है (108) । स्वतन्त्रता का साधक सदैव पर वस्तु के ग्राश्रय-रहित होता है । वह स्वशासित रहता है, तथा जायक मत्ता मात्र बना रहता है ( 111 ) |
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यहाँ प्रश्न है सावना मे वेष का क्या महत्व है ? इसके उत्तर में कहा जा सकता है कि वेष निश्चय ही परम शान्ति का मार्ग नही है (155) | लोक मे नाना प्रकार के साधुओ के वेप और गृहस्थोके वेष प्रचलित हैं। मूढ व्यक्ति किसी विशेष वेष को ही परम शान्ति / स्वतन्त्रता का मार्ग बताता है (154), किन्तु कोई भी वेष परमशान्ति / स्वतन्त्रता का मार्ग नही हो सकता है (156) | इसलिए समयसार का शिक्षण है कि गृहस्थो और साधुओ के द्वारा वारण किए हुए वेषो की बात को त्यागकर व्यक्ति को सम्यग्दर्शन (स्वतन्त्रता का स्मरण), सम्यक्ज्ञान (स्वतन्त्रता का ज्ञान) और
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समयसार