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अथैवममीषु प्रमाणनयनिक्षेपेषु भूतार्थत्वेनैको जीव एव प्रद्योतते ।
( मालिनी )
उदयति न नयश्रीरस्तमेति प्रमाणं क्वचिदपि च न विद्मो याति निक्षेपचक्रम् । किमपरमभिदध्मो धाम्नि सर्वंकषेऽस्मिन्ननुभवमुपयाते भाति न द्वैतमेव ।। ९ ।।
समयसार
इसप्रकार इन प्रमाण, नय और निक्षेपों में भूतार्थरूप से एक जीव ही प्रकाशमान है । " पहले कहा था कि नवतत्त्वों में भूतार्थरूप से एक जीव ही प्रकाशमान है और यहाँ कहा जा रहा है कि इन प्रमाण, नय, निक्षेपों में भी भूतार्थनय से एक जीव ही प्रकाशमान है।
इसप्रकार एकमात्र यही कहा जा रहा है कि नवतत्त्वों में भी एकमात्र शुद्धजीवतत्त्व ही प्रकाशमान है और प्रमाण, नय, निक्षेपों में भी एकमात्र वही शुद्धजीवतत्त्व प्रकाशमान है। यह प्रकाशमान जीवतत्त्व ही दृष्टि का विषय है, श्रद्धा का श्रद्धेय है, ध्यान का ध्येय है, परमज्ञान का ज्ञेय है, मुक्तिमार्ग का मूल आधार है, इसके आश्रय से ही मुक्ति का मार्ग प्रगट होता है। जब वह शुद्धजीवास्तिकाय ज्ञान का ज्ञेय, श्रद्धान का श्रद्धेय और ध्यान का ध्येय बनता है अर्थात् आत्मा का अनुभव होता है, आत्मानुभूति होती है; तब प्रमाण -नय-निक्षेप की तो बात ही क्या ; परन्तु किसी भी प्रकार का द्वैत ही भासित नहीं होता है, एक आत्मा ही प्रकाशमान होता है ।
यही भाव आगामी कलश में भी व्यक्त किया गया है, जिसका पद्यानुवाद इसप्रकार है -
( रोला )
निक्षेपों के चक्र विलय नय नहीं जनमते ।
अर प्रमाण के भाव अस्त हो जाते भाई ।। अधिक कहें क्या द्वैतभाव भी भासित ना हो ।
शुद्ध आतमा का अनुभव होने पर भाई ।। ९ ।।
सर्वप्रकार के भेदों से पार सामान्य, अभेद - अखण्ड, नित्य, एक चिन्मात्र भगवान आत्मा को विषय बनानेवाले परमशुद्धनिश्चयनय के विषयभूत शुद्धात्मा का अनुभव होने पर नयों की लक्ष्मी उदय को प्राप्त नहीं होती, प्रमाण अस्त हो जाता है और निक्षेपों का समूह कहाँ चला जाता है ? - यह हम नहीं जानते ।
जब द्वैत ही प्रतिभासित नहीं होता, तब प्रमाणादि के विकल्पों की तो बात ही क्या करें ?
इसप्रकार इस तेरहवीं गाथा, उसकी टीका एवं उसमें समागत कलशों में एक बात अत्यन्त स्पष्टरूप से उभर कर सामने आई है कि यद्यपि प्रमाण-नय-निक्षेपों के विषयभूत नवतत्त्वार्थ, द्रव्यगुण-पर्याय एवं उत्पाद-व्यय- ध्रौव्य भी जानने योग्य हैं, उन्हें जानना उपयोगी भी है, आवश्यक भी है; तथापि सम्यग्दर्शन की प्राप्ति तो शुद्धनय के विषयभूत शुद्धात्मा के आश्रय से ही होती है।