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समयसार ज्ञानमेव मोक्षस्य कारणं विहितं परमार्थभूतज्ञानशून्यस्याज्ञानकृतयोव्रततप: कर्मणो: बंधहेतुत्वाबालव्यपदेशेन प्रतिषिद्धत्वे सति तस्यैव मोक्षहेतुत्वात् ।
अथ ज्ञानाज्ञाने मोक्षबंधहेतू नियमयति - ज्ञानमेव मोक्षहेतुः तदभावे स्वयमज्ञानभूतानामज्ञानि -नामन्तव्रतनियमशीलतप:प्रभृतिशुभकर्मसद्भावेऽपि मोक्षाभावात् । अज्ञानमेव बंधहेतुः तदभावे स्वयं ज्ञानभूतानां ज्ञानिनांबहिव॑तनियमशीलतप:प्रभृतिशुभकर्मासद्भावेऽपि मोक्षसद्भावात् ।।१५२-१५३।।
(शिखरिणी) यदेतद् ज्ञानात्मा ध्रुवमचलमाभाति भवनं शिवस्यायं हेतुः स्वयमपि यतस्तच्छिव इति ।
अतोऽन्यबंधस्य स्वयमपि यतो बंध इति तत्
ततो ज्ञानात्मत्वं भवनमनुभूतिर्हि विहितम् ।।१०५।। "जो जीव परमार्थभूत ज्ञान से रहित हैं, उनके द्वारा अज्ञानपूर्वक किये गये व्रत, तप आदि सभी कार्य कर्मबंध के कारण हैं, मुक्ति के कारण नहीं; इसलिए आगम में भी उनके इन कार्यों को बालसंज्ञा देकर उनका निषेध किया गया है और ज्ञान को ही मुक्ति का कारण कहा गया है।
अब यह सुनिश्चित करते हैं कि ज्ञान मोक्ष का और अज्ञान बंध का कारण है। ज्ञान ही मोक्ष का हेतु है; क्योंकि ज्ञान के अभाव में स्वयं ही अज्ञानरूप होनेवाले अज्ञानियों के व्रत, तप, शील, संयम आदि शुभकर्मों का सद्भाव होने पर भी मोक्ष का अभाव है। इसीप्रकार अज्ञान ही बंध का कारण है; क्योंकि उसके अभाव में स्वयं ही ज्ञानरूप होनेवाले ज्ञानियों के बाह्य व्रत, नियम, शील, तप आदि शुभकर्मों का अभाव होने पर भी मोक्ष का सद्भाव है।"
यहाँ यह कहा जा रहा है कि जो जीव परमार्थ से बाह्य हैं अथवा परमार्थ में अस्थित हैं; त्रिकाली ध्रुव निज भगवान आत्मा को नहीं जानते हैं; उनके व्रत, नियम, तप, शील - सभी व्यर्थ हैं; क्योंकि उन्हें आत्मज्ञान बिना मात्र इनसे ही मुक्ति की प्राप्ति नहीं हो सकती।
तात्पर्य यह है कि आत्मा के ज्ञान, श्रद्धान और ध्यान से संयुक्त ज्ञानीजन व्रत, तप, शीलादि के बिना भी मुक्त होते देखे जाते हैं और आत्मा के ज्ञान, श्रद्धान और ध्यान से शून्य अज्ञानीजन व्रतनियमादि का पालन करते हुए भी मुक्त नहीं होते; इसकारण यह सहज ही सिद्ध है कि आत्मा के ज्ञान, श्रद्धान और ध्यानरूप आत्मज्ञान ही मुक्ति का एकमात्र हेतु है।
इसप्रकार इन गाथाओं में यही कहा गया है कि ज्ञान ही मोक्ष का हेतु है। अब आगामी कलश में भी इसी बात को पुष्ट करते हैं, जिसका पद्यानुवाद इसप्रकार है
(रोला) ज्ञानरूप ध्रुव अचल आतमा का ही अनुभव।
___ मोक्षरूप है स्वयं अत: वह मोक्षहेतु है।। शेष भाव सब बंधरूप हैं बंधहेतु हैं।
इसीलिए तो अनुभव करने का विधान है।।१०५।।