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के कर्मों को बाँधते हैं, इसकारण ज्ञानी तो अबंध ही है।
ज्ञानी हि तावदास्रवभावभावनाभिप्रायाभावान्निरास्रव एव । यत्तु तस्यापि द्रव्यप्रत्ययाः प्रतिसमयमनेकप्रकारं पुद्गलकर्म बध्नंति, तत्र ज्ञानगुणपरिणाम एव हेतुः।
समयसार
कथं ज्ञानगुणपरिणामो बंधहेतुरिति चेत् - ज्ञानगुणस्य हि यावज्जघन्यो भावः तावत् तस्यान्तर्मुहूर्तविपरिणामित्वात् पुनः पुनरन्यतयास्ति परिणामः । स तु यथाख्यातचारित्रावस्थाया अधस्तादवश्यंभाविरागसद्भावात् बंधहेतुरेव स्यात् । । १७०-१७१ ।।
क्योंकि ज्ञानगुण जघन्य ज्ञानगुण के कारण फिर भी अन्यरूप से परिणमन करता है; इसलिए वह ज्ञानगुण कर्मों का बंधक कहा गया है।
उक्त गाथाओं का भाव आचार्य अमृतचन्द्र आत्मख्याति में इसप्रकार व्यक्त करते हैं
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"ज्ञानी तो आस्रवभाव की भावना के अभिप्राय के अभाव के कारण निरास्रव ही हैं, परन्तु उसे भी द्रव्यप्रत्यय प्रतिसमय अनेकप्रकार का पुद्गल कर्म बाँधते हैं; उसमें ज्ञानगुण का परिणमन ही कारण है
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अब यह प्रश्न होता है कि ज्ञानगुण बंध कारण कैसे है तो उसके उत्तर में कहते हैं कि - जबतक ज्ञानगुण का जघन्यभाव है, क्षायोपशमिक भाव है; तबतक वह ज्ञानगुण अन्तर्मुहूर्त में विपरिणाम को प्राप्त होता है । इसीलिए पुनः पुनः उसका अन्यरूप परिणमन होता है। वह ज्ञानगुण का जघन्यभाव से परिणमन यथाख्यातचारित्र अवस्था के नीचे अवश्यम्भावी राग का सद्भाव होने से बंध का कारण ही है । "
यहाँ विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि यहाँ १७०वीं गाथा और उसकी टीका में - ज्ञानी जीवों के ७७ प्रकृतियों का जो बंध होता है - उसका कारण ज्ञान-दर्शन गुण या उनके परिणमन को कहा गया है।
यह पढ़कर यह शंका होना अत्यन्त स्वाभाविक है कि ज्ञान-दर्शन गुण या उनका परिणमन बंध का कारण कैसे हो सकता है ?
इसका समाधान १७१वीं गाथा यह कहकर किया गया है कि जबतक ज्ञान-दर्शन गुण का परिणमन जघन्यभाव से होता है, क्षायोपशमिक भाव के रूप में होता है; तबतक यथाख्यातचारित्र अवस्था के नीचे राग का सद्भाव अवश्य होता है। वस्तुतः तो वह राग ही बंध का कारण है; पर अविनाभावी संबंध देखकर यहाँ ज्ञान-दर्शन गुण या उसके परिणमन को बंध का कारण कह दिया । इस बात को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए ।
प्रश्न
यदि जघन्यभाव से परिणमित ज्ञानगुण के साथ अविनाभावी रूप से रहनेवाले रागादि भावों से ही बंध होता है तो फिर ज्ञानगुण को बंध का कारण कहना क्या अनुचित नहीं लगता ? उत्तर - अरे भाई ! इसमें उचित-अनुचित का क्या सवाल है; जो वस्तुस्थिति है, उसे समझना चाहिए; जो अपेक्षा हो, उसे अच्छी तरह समझना चाहिए।
यहाँ फिर प्रश्न उपस्थित होता है कि यदि ज्ञानगुण का जघन्यभाव बंध का कारण है तो फिर
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