Book Title: Samaysar
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 598
________________ परिशिष्ट अखण्डितप्रतापस्वातंत्र्यशालित्वलक्षणा प्रभुत्वशक्तिः। सर्वभावव्यापकैकभावरूपा विभुत्वशक्तिः। इसप्रकार हम देखते हैं कि आरंभ की छह शक्तियों में अनंतचतुष्टय के बीज विद्यमान हैं। ध्यान रहे, इस वीर्यशक्ति का माता-पिता के रज-वीर्य से कोई संबंध नहीं है; क्योंकि वे तो जड़ हैं, पुद्गल के परिणमन हैं। इसीप्रकार तीर्थंकर को जन्म से ही प्राप्त होनेवाले अतुल्यबल से भी इसका कोई संबंध नहीं है; क्योंकि वह भी शारीरिक बल से ही संबंध रखता है। इस वीर्यशक्ति का संबंध अनंतचतुष्टय में शामिल अनंतवीर्य से है। अनंतवीर्य इस वीर्यशक्ति के पूर्ण निर्मल परिणमन का ही नाम है। इसप्रकार वीर्यशक्ति की चर्चा के बाद अब प्रभुत्वशक्ति की चर्चा करते हैं। ७. प्रभुत्वशक्ति प्रभुत्वशक्ति का स्वरूप आचार्य अमृतचन्द्र आत्मख्याति में इसप्रकार स्पष्ट करते हैं - अखण्डितप्रताप और स्वतंत्रता से सम्पन्न होना है लक्षण जिसका; वह प्रभुत्वशक्ति है। प्रभु अर्थात् प्रभावशाली, पूर्णतः समर्थ । अनंत महिमावंत, अखण्डित प्रताप से सम्पन्न और पूर्णतः स्वतंत्र पदार्थ; जिसमें रंचमात्र भी दीनता न हो, जिसे पर के सहयोग की रंचमात्र भी आवश्यकता नहीं हो; वह पदार्थ प्रभु कहा जाता है। ___ अपना भगवान आत्मा भी एक ऐसा ही प्रभु पदार्थ है, अनंतप्रभुता से सम्पन्न है, अनंत महिमावंत है, अखण्डित प्रतापवंत है, पूर्णतः स्वतंत्र समर्थ पदार्थ है; क्योंकि वह प्रभुत्वशक्ति से सम्पन्न है। उसमें और उसके असंख्य प्रदेशों में, अनन्त गुणों में और उनकी निर्मलपर्यायों में प्रभुत्वशक्ति का रूप विद्यमान है। इसकारण यह भगवान आत्मा प्रभु है, उसके असंख्य प्रदेश प्रभु हैं, उसके अनंत गुण प्रभु हैं और उनकी अनंत निर्मलपर्यायें भी प्रभु हैं। _इसप्रकार की अनंत प्रभुता से सम्पन्न भगवान आत्मा तू स्वयं है, मैं स्वयं हूँ, हम सब स्वयं हैं; - ऐसा जानकर हे आत्मन ! त अपनी प्रभता को पहिचान । ऐसा करने से तेरी वर्तमान पर्याय में विद्यमान पामरता समाप्त होगी और प्रभुत्व शक्ति का निर्मल परिणमन होकर तेरी पर्याय में भी प्रभुता प्रगट हो जायेगी। इसप्रकार प्रभुत्वशक्ति का निरूपण करने के उपरान्त अब विभुत्वशक्ति की चर्चा करते हैं - ८. विभुत्वशक्ति विभुत्वशक्ति का स्वरूप आत्मख्याति में इसप्रकार स्पष्ट किया गया है - विभुत्वशक्ति सर्वभावों में व्यापक एक भावरूप होती है। जीवत्व, चिति, दशि और ज्ञान आदि सभी भावों अर्थात शक्तियों में व्याप्त एकभावरूप शक्ति का नाम विभुत्वशक्ति है।

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