Book Title: Saman suttam Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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घणधाइकम्ममहणा, तिहुवणवरभव्व-कमलमत्तंडा। अरिहा अणंतणाणी, अणुवमसोक्खा जयंतु जए॥७॥
८. अट्ठविहकम्मवियला, णिट्ठियकज्जा पणट्ठसंसारा।
दिट्ठसयलत्थसारा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु॥८॥
पंचमहव्वयतुंगा, तक्कालिय-सपरसमय-सुदधारा। णाणागुणगणभरिया, आइरिया मम पसीदंतु॥९॥
१०. अण्णाणघोर तिमिरे, दुरंततीरम्हि हिंडमाणाणं।
भवियाणुजोययरा, उवज्झाया वरमदिं देंतु ॥१०॥
११. थिरधरियसीलमाला, ववगयराया जसोहपडिहत्था।
बहुविणयभूसियंगा, सुहाई साहू पयच्छंतु॥११॥
१२. अरिहंता, असरीरा, आयरिया, उवज्झाय मुणिणो।
'पंचक्खरनिप्पण्णो, ओंकारो पंच परमिट्ठी॥१२॥
समणसुत्त - भाग १
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