Book Title: Saman suttam Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 65
________________ १६५. न कम्मुणा कम्मं खवेंति वाला, अकम्मुणा कम्म खति धीरा। मेधाविणो लोभमया वतीता, संतोसिणो नो पकरेंति पावं॥६॥ १६६. सव्वओ पमत्तस्स भयं, सव्वओ अप्पमत्तस्स नत्थि भयं॥७॥ १६७. नाऽऽलस्सेण समं सुक्खं, न विज्जा सह निद्दया । न वेरग्गं ममत्तेणं, नारंभेण दयालुया॥८॥ १६८. जागरह नरा! णिच्चं, जागरमाणस्स वड्ढते बुद्धी। जो सुवति ण सो धन्नो, जो जग्गति सो सया धन्नो।।९।। १६९. आदाणे णिक्खेवे, वोसिरणे ठाणगमणसयणेसु। सव्वत्थ अप्पमत्तो, दयावरो होदु हु अहिंसओ॥१०॥ १४. शिक्षासूत्र १७०. विवत्ती अविणीअस्स, संपत्ती विणीअस्स य। जस्सेयं दुहओ नायं, सिक्खं से अभिगच्छइ॥१॥ १७१. अह पंचहिं ठाणेहिं, जेहिं सिक्का न लगभई। थम्भा कोहा पमाएणं, रोगेणाऽलस्सएण य॥२॥ १७२-१७३. अह अट्ठहिं ठाणेहिं, सिक्खासीले त्ति वुच्चई। अहस्सिरे सया दंते, न य मम्ममुदाहरे॥३॥ नासीले न विसीले, न सिया अइलोलुए। अकोहणे सच्चरए, सिक्खासीले त्ति वुन्चई॥४॥ समणसुत्त - भाग १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119